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बढ़ते गरीब और बेमानी बहस - अश्वनी कुमार

देशभर के शहरों में रहनेवाले गरीबों के आंकड़े जुटाने के लिए एक जून से सात माह का सर्वे शुरू हो चुका है. इसके साथ ही गरीबों की पहचान के मानदंड पर बहस भी फ़िर छिड़ गयी है. यह विडंबना ही है कि तमाम योजनाओं के बावजूद गरीबों की संख्या लगातार बढ़ रही है. शहरी गरीबों की गणना की खबरों के साथ ही गरीबी को लेकर जारी बहस फ़िर छिड़ गयी है....

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विकासशील देशों का हो ध्यान - जोसफ़ इ स्टिग्लिज

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष को नया मैनेजिंग डायरेक्टर उम्मीद से पहले मिल जायेगा. मैं पिछले एक दशक से इस संगठन के गवर्नेस की आलोचना करता रहा हूं. जिस प्रकार इसके प्रमुख का चुनाव होता है, वह संगठन की खामियों को दर्शाता है. संगठन के प्रमुख शेयर धारकों (जी-8) के बीच सहमति है कि आइएमएफ़ का मैनेजिंग डायरेक्टर यूरोपियन, नंबर दो अमेरिकन और विश्व बैंक का प्रमुख भी वही होगा. विकासशील देशों से सिर्फ़ दिखावे...

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अकाल, भुखमरी इस देश में कई समुदायों की जीवनसाथी है- विनायक सेन से आशीष कुमार अंशु की बातचीत

विनायक सेन को लेकर मीडिया और समाज में दो तरह की छवि है। एक विनायक सेन, जिन्हें हमेशा देश के दुश्मन के तौर पर पेश किया जाता है, दूसरे विनायक सेन वे जो आदिवासियों के शुभचिंतक हैं और गरीब समाज के मसीहा हैं। दोनों विचार अतिवादी हैं। इस तरह एक आम भारतीय असमंजस की स्थिति में है कि वह इन दोनों में से किसे सच माने और किसे झूठ! यदि हम मीडिया की नजर...

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जन्म से बंधी सामाजिक बेड़ियां : हर्ष मंदर

लाखों महिलाएं, पुरुष और बच्चे आज भी उन अपमानजनक सामाजिक बेड़ियों में बंधे हुए हैं, जो उनके जन्म से ही उन पर लाद दी गई थीं। आधुनिकता की लहर के बावजूद आज भी भारत के दूरदराज के देहातों में जाति व्यवस्था जीवित है। यह वह व्यवस्था है, जो किसी व्यक्ति के जाति विशेष में जन्म लेने के आधार पर ही उसके कार्य की प्रकृति या उसके रोजगार का निर्धारण कर...

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फेंके जूठन से आग बुझती पेट की

आसनसोल : विकासशील देशों के लिस्ट में लगातार आगे बढ़ रहे भारत में अब भी लाखों बच्चे ऐसे हैं जो हर दिन लोगों द्वारा फ़ेके हुए कचरे से अपना पेट भरते हैं. शनिवार को आसनसोल रेलवे स्टेशन के सात नंबर प्लेटफॉर्म पर कुछ ऐसा ही दृश्य देखने को मिला. चार गरीब बच्चे कचरे के पास पहुंचे और एक पॉलिथिन को उठा-उठा कर देखने और खोलने लगे. एक पॉलिथिन में कुछ बचा हुआ...

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