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सालभर बाद एक बार फिर संसद में पेश किया जायेगा वेतन संहिता विधेयक

नयी दिल्ली : एक साल बाद एक बार फिर केंद्र की मोदी सरकार मॉनसून सत्र के दौरान वेतन संहिता विधेयक को संसद में पेश करेगी. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पिछले साल 26 जुलाई को ही इस विधेयक की मंजूरी दे दी थी. कैबिनेट से इस विधेयक की मंजूरी मिलने के बाद पिछले साल के मॉनसून सत्र के दौरान इसे सदन में पेश किये जाने की बात कही जा रही थी. बुधवार...

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बैंकिंग व्यवस्था में सुधार जरूरी-- अश्विनी महाजन

पिछले दिनों खबर आयी कि बीते पांच साल के दौरान भारत में 23 हजार बैंक धोखाधड़ियां हुईं, जिसके चलते एक लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की धनराशि फंस गयी है. निश्चित रूप से इसका असर हमारी अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा और बैंकिंग व्यवस्था पर तो यह असर दिख भी रहा है. आज बैंक ही वित्तीय मध्यस्थता का स्रोत हैं. ऐसे लोग जिनके पास अतिरिक्त पैसा होता है, चाहे वे गृहस्थ हों,...

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मीडिया की आजादी के सवाल-- एम वेंकैया नायडू

जानवर और इंसान में यही फर्क है कि इंसान कुछ नियमों से संचालित होता है, जो व्यवस्थित जीवन की जरूरी शर्त है, अन्यथा तो एक जंगल राज होगा, जहां बलशाली ही राज करता है। व्यवस्थित जीवन का मतलब है, एक तरह का संवाद संतुलन, जो किसी एक घटक को किसी भी स्तर पर निरंकुश होने का अधिकार नहीं देता। आजादी कैसी भी हो, आत्मसंयम मांगती है। भारतीय संविधान कुछ मौलिक...

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सेलेब्रिटी और न्याय की जद्दोजहद - अद्वैता काला

न्यायिक तंत्र के साथ सलमान खान का अभी हाल में जो पाला पड़ा है, उस पर तमाम टीका-टिप्पणियां हुई हैं। मसलन मशहूर हस्तियां यानी सेलेब्रिटी अगर ऐसे हालात में फंस जाएं तो उसके क्या फायदे-नुकसान हैं। इस पर लोगों की राय भी बहुत ज्यादा बंटी हुई थी। कुछ लोगों का मानना था कि उन्हें जेल में होना चाहिए तो कुछ लोगों की राय में उनके साथ कुछ ज्यादती हुई है...

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दलितों की नहीं, वोट बैंक की फिक्र - प्रदीप सिंह

जहां व्यक्तियों के निजी स्वार्थ बहुत महत्वपूर्ण हों और समाज का कोई स्वार्थ न हो, वहां अंतर्कलह होना कोई अनहोनी बात नहीं है। यह बात आज की राजनीतिक परिस्थिति पर सटीक बैठती है। राजनीतिक दलों के स्वार्थ समाज और देश के हित पर भारी पड़ रहे हैं। राजनीतिक दलों की आपसी प्रतिद्वंद्विता/प्रतिस्पर्द्धा स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छी भी है और जरूरी भी। संसदीय जनतंत्र में विपक्ष की भूमिका बड़ी अहम...

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