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प्रत्याशियों को चुनाव में अनुदान का विकल्प- भरत झुनझुनवाला

एनडीए की भारी जीत ने हमारी चुनावी व्यवस्था में पार्टियों के वर्चस्व को एक बार फिर स्थापित किया है। विशेष यह कि चुनाव में जनता के मुद्दे पीछे और व्यक्तिगत मुद्दे आगे थे। यह लोकतंत्र के लिए शुभ सन्देश नहीं है। स्वतंत्रता हासिल करने के बाद गांधीजी ने सुझाव दिया था कि कांग्रेस पार्टी को समाप्त कर दिया जाए और जनता द्वारा बिना किसी पार्टी के नाम के सीधे अपने...

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प्रेस की आज़ादी के मामले में भारत दो पायदान फिसला, चुनाव का समय पत्रकारों के लिए बेहद ख़तरनाक

नई दिल्लीः मीडिया की आजादी से संबंधित ‘रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स' की सालाना रिपोर्ट में प्रेस की आजादी के मामले में भारत दो पायदान खिसक गया है. 180 देशों में भारत 140वें स्थान पर है. गुरुवार को जारी इस रिपोर्ट में भारत में चल रहा चुनाव प्रचार का यह दौर पत्रकारों के लिए खासतौर पर सबसे ख़तरनाक वक्त के तौर पर चिह्नित किया गया है. वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2019 यानी ‘विश्व प्रेस...

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सरकार की मीडिया के ख़िलाफ़ ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट के इस्तेमाल की कोशिश निंदनीय: मीडिया संगठन

नई दिल्ली: रफाल मामले में अटॉर्नी जनरल द्वारा सुप्रीम कोर्ट में की गई टिप्पणियों की एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने बृहस्पतिवार को निंदा की. साथ ही, गिल्ड ने सरकारी गोपनीयता कानून को मीडिया के खिलाफ इस्तेमाल करने की हर कोशिश को भी निंदनीय करार दिया. गिल्ड ने कहा कि सरकारी गोपनीयता कानून को मीडिया के खिलाफ इस्तेमाल करने की हर कोशिश उतनी ही निंदनीय है, जितना निंदनीय पत्रकारों से उनके सूत्रों...

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जज तनाव और दबाव में फ़ैसले लिख रहे हैं: जस्टिस एके सीकरी

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के जज एके सीकरी का कहना है कि आज के युग में न्यायिक प्रक्रिया दबाव में है, जज तनाव और दबाव में फैसले लिख रहे हैं. किसी मामले पर सुनवाई शुरू होने से पहले ही लोग बहस करने लग जाते हैं कि इसका फैसला क्या आना चाहिए. इसका जजों पर प्रभाव पड़ता है. सीकरी ने ‘लॉएशिया' के सम्मेलन में ‘डिजिटल युग में प्रेस की स्वतंत्रता' विषय पर...

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सवर्ण गरीबों की खिल्ली-- मिलिन्द मुरुगकर

नरेंद्र मोदी सरकार ने सवर्ण गरीबों को आर्थिक मापदंड पर आधारित आरक्षण देने का निर्णय किया है. इस मापदंड के अनुसार आठ लाख रुपये प्रति वर्ष, अर्थात 66,600 रुपये प्रतिमाह से कम आय पाने वाले लोग अब आर्थिक मापदंड से पिछड़े माने जाएंगे. इसका सीधा मतलब यह है कि मोदी सरकार ने वास्तविक दृष्टि से गरीब सवर्णों को आरक्षण दिया ही नहीं है, बल्कि चुनाव जीतने के लिए उनकी आंखों में...

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