भोपाल। प्रदेश के किसानों को खाद बीज के लिए कर्ज बिना ब्याज के मिलेगा। यह ऐतिहासिक एलान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किसान बचाओ अनुष्ठान आंदोलन के तहत 24 घंटे का उपवास खत्म करने से पहले किया। इस पर अमल इसी खरीफ सीजन यानी एक अप्रैल 2012 से होगा। भाजपा खाद के दाम बढ़ाए जाने को लेकर केंद्र सरकार के खिलाफ एक महीने अभियान चलाएगी और 15 जुलाई को भोपाल में किसान महापंचायत...
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खबरों का ट्विटरीकरण!- राजदीप सरदेसाई
हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान मैंने बाबा रामदेव, जो टेली-फ्रेंडली योगगुरु के साथ ही अब कालेधन के विरुद्ध मोर्चा खोल लेने वाले आंदोलनकारी भी बन गए हैं, से पूछा कि उनकी संपदा का राज क्या है? उन्होंने तपाक से कहा : ‘इस तरह के प्रश्न क्यों पूछ रहे हो? तुम भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई में हमारे साथ हो या दुश्मनों के साथ?’ आह! भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ रहे...
More »फेसबुक और पश्चिमी पूंजीवाद- केविन रैफर्टी
सिंगापुर में बीबीसी वर्ल्ड बिजनेस न्यूज का प्रस्तुतकर्ता खुशी-खुशी इस संभावना के बारे में बात कर रहा था कि अपने आईपीओ के मार्फत फेसबुक एक ‘ट्रिलियन डॉलर कंपनी’ बन सकती है। जाहिर है वह गलत था। फेसबुक का कमजोर प्रदर्शन इस बात की ओर साफ इशारा करता है कि पश्चिमी पूंजीवाद पटरी से उतरता जा रहा है। तथाकथित वैश्विक नेता महज वक्त जाया कर रहे हैं, जबकि बुनियादी संरचनाओं के समक्ष गंभीर संकट...
More »नगड़ी विवाद : ग्रामीणों की याचिका हाइकोर्ट से खारिज
रांची : हाइकोर्ट में बुधवार को नगड़ी (कांके) में जमीन अधिग्रहण मामले पर सुनवाई हुई. चीफ जस्टिस न्यायमूर्ति प्रकाश टांटिया व न्यायमूर्ति अपरेश कुमार सिंह की खंडपीठ ने ग्रामीणों (प्रार्थी) की हस्तक्षेप याचिका को खारिज कर दी. ग्रामीणों की ओर से मामले की पैरवी कर रहे वकील राजीव कुमार ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खुला हुआ है. सामाजिक कार्यकर्ता दयामनी बरला ने भी कहा कि वे लोग सुप्रीम कोर्ट जायेंगे. 17...
More »हिंसक प्रतिरोध कितना उचित- हर्षमंदर
बहुतेरी संस्कृतियों में अन्याय के प्रतिरोध को सर्वोच्च मानवीय दायित्व का दर्जा दिया गया है। इसी क्रम में एक बहस सदियों से जारी है और आज भी प्रासंगिक बनी हुई है। यह है अत्याचार और अन्याय के प्रतिरोध में हिंसा की वैधता। सवाल यह है कि अगर राज्यसत्ता के कुछ सशक्त प्रतिनिधि अगर अन्यायपूर्ण हो गए हों तो क्या उनके प्रतिरोध के लिए हिंसा उचित है? दूसरे शब्दों में क्या न्याय के...
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