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कचरे के निपटारे की चुनौती-- मोनिका शर्मा

एक हालिया अध्ययन के मुताबिक वर्ष 2047 तक भारत में कूड़े का ‘उत्पादन' पांच गुना बढ़ जाएगा। इसका अर्थ है कि हमारा देश दुनिया भर में कूड़े का सबसे बड़ा उत्पादक बनने की दिशा में तेजी से बढ़ रहा है। यह बहुत चिंताजनक है, एक ऐसे देश में, जहां कूड़ा प्रबंधन पहले से ही बहुत बड़ी समस्या है। इतना ही नहीं, हमारे यहां पारंपरिक तरल और ठोस कूड़े के अलावा...

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झूठी खबरें तो रोकनी ही होंगी-- नवीन जोशी

टीवी के पर्दे पर किसी क्रीम से चुटकियों में कमर दर्द या मुहांसे गायब होते हम रोज देखते हैं. हम जानते हैं कि ऐसा वास्तव में नहीं होता. यह मिथ्या या कह लीजिये अतिरंजित प्रचार है, विज्ञापन है. लेकिन समाचारों पर हम भरोसा करते हैं. अगर समाचार असत्य हो, मुनाफे के वास्ते या किसी की लोकप्रिय छवि बनाने अथवा बिगाड़ने के लिए मिथ्या प्रचार को समाचार का रूप दिया जाये...

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महिला सशक्तीकरण की बाधित राह-- ज्योति सिडाना

दहला देने वाली इन कुछ घटनाओं पर नजर डालें। चार मार्च, 2018 को बिहार के भोजपुर में दुकान पर सामान लेने गई चार साल की बच्ची के साथ एक युवक ने दुष्कर्म कर उसे मारने की धमकी दी। सात मार्च को कोलकाता में कूड़ा बीनने वाली महिला की तीन साल की बच्ची से दुष्कर्म किया। एक और घटना में सात और दस साल की दो बहनें ट्यूशन से लौट कर...

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दलितों की नहीं, वोट बैंक की फिक्र - प्रदीप सिंह

जहां व्यक्तियों के निजी स्वार्थ बहुत महत्वपूर्ण हों और समाज का कोई स्वार्थ न हो, वहां अंतर्कलह होना कोई अनहोनी बात नहीं है। यह बात आज की राजनीतिक परिस्थिति पर सटीक बैठती है। राजनीतिक दलों के स्वार्थ समाज और देश के हित पर भारी पड़ रहे हैं। राजनीतिक दलों की आपसी प्रतिद्वंद्विता/प्रतिस्पर्द्धा स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छी भी है और जरूरी भी। संसदीय जनतंत्र में विपक्ष की भूमिका बड़ी अहम...

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‘वयं आधुनिका:’-- मृणाल पांडे

आपको यह जानकर अचरज होगा कि जिस तरह आज हम अंग्रेजी में ‘द न्यू रियल' यानी नयी सच्चाई को जगह देकर पुरानी सचाइयों को खारिज कर रहे हैं, वह सिलसिला आज का नहीं, बहुत पुराना है. सदियों से हर नयी पीढ़ी यह दावा करती आयी है कि वह पुरानों से बेहतर है. सबसे पहले का लिखित दावा 11वीं सदी के आसपास का है. इसमें मिथिला के उदयनाचार्य अपने निकट परवर्ती...

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