आदिवासियों की दशा समझने और सुधारने के लिए आजादी के बाद कई समितियां बनी हैं इनमें पहली मानवशास्त्री वेरियर एल्विन की अध्क्षता में बनी थी. और पहला आयोग कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष यूएन धेबर की अध्यक्षता में 1960 में बना. लेकिन शुरुआत में ही ये प्रयास खोखले साबित होने लगे. इसका नतीजा यह रहा कि 1960-70 के दशक के दौरान बस्तर में आदिवासी आंदोलन में भारी उभार देखा गया. इसका नेतृत्व बस्तर...
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औरत के हक में नहीं- तस्लीमा नसरीन
लोकतंत्र बहुत ही सभ्य व्यवस्था है। लेकिन इस तंत्र में असभ्य और मूर्खों का भी ऐसा अबाध प्रवेश है कि कई बार लगता है, लोकतंत्र की स्थापना पर ही हमें रुक नहीं जाना चाहिए, बल्कि उसे और बेहतर करने के बारे में भी सोचना चाहिए। बचपन में मैंने दुर्गम गांवों के कुछ मतदाताओं को नाव चिह्न पर वोट देने जाते देखा था। वे सोचते थे कि नाव चिह्न पर वोट...
More »स्त्री अधिकार और आंबेडकर- सुजाता पारमिता
जनसत्ता 14 अप्रैल, 2014 : आंबेडकर ने कहा था, ‘मैं नहीं जानता कि इस दुनिया का क्या होगा, जब बेटियों का जन्म ही नहीं होगा। ’ स्त्री सरोकारों के प्रति डॉ भीमराव आंबेडकर का सर्मपण किसी जुनून से कम नहीं था। छियासी साल पहले, अट्ठाईस जुलाई 1928 के दिन, उन्होंने बंबई विधान परिषद में स्त्रियों के लिए प्रसूति से जुड़े पहलुओं से संबंधित एक महत्त्वपूर्ण विधेयक पेश किया गया था। उसका...
More »कटते जंगल किसका मंगल- मुस्कान
जनसत्ता 8 फरवरी, 2014 : विकास के पूंजीवादी-नवउदारवादी मॉडल की कुछ खास तरह की जरूरतें होती हैं। या कहें कि यह मॉडल आर्थिक संवृद्धि के एवज में कुछ खास बलिदानों की मांग करता है। हम देखते हैं कि भारत सरीखे अधिकतर विकासशील देश इन बलिदानों के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। अब सवाल है कि विकास की प्रचलित अवधारणा किन बलिदानों की मांग करती है? और ये बलि के बकरे...
More »सुधार के नाम पर- विनोद कुमार
जनसत्ता 19 अक्तूबर, 2013 : कोयला घोटाले को लेकर एक बार फिर हंगामा है। इस बार एक बड़े उद्योगपति कुमार मंगलम बिड़ला और पूर्व कोयला सचिव पीसी पारख पर सीबीआइ द्वारा दर्ज एफआइआर को लेकर हंगामा मचा है। बिड़ला देश के प्रतिष्ठित उद्योगपति हैं और पूर्व सचिव पारख को कोयला घोटाले का खुलासा करने वाले कैग ने ‘विसल ब्लोअर’ कहा था। लेकिन यह सवाल तो उठता ही है कि कई...
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