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पर्यावरण की राजनीति और धरती का संकट

खुद मनुष्य ने अपनी भावी पीढ़ियों की जिंदगी को दांव पर लगा दिया है। दुनिया भर में चिंता की लकीरें गहरी होती जा रही हैं। सवाल ल्कुल साफ है- क्या हम खुद और अपनी आगे की पीढ़ियों को बिगड़ते पर्यावरण के असर से बचा सकते हैं? और जवाब भी उतना ही स्पष्ट- अगर हम अब भी नहीं संभले तो शायद बहुत देर हो जाएगी। चुनौती हर रोज ज्यादा बड़ी होती...

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कोसी का कहर

कोसी का कहर अगस्त 2008 में बिहार के एक बड़े इलाके पर टूट पड़ा। कोसी को कभी बिहार का शोक कहा जाता था। जब यह नदी पूर्णिया जिले में बहती थी तब एक कहावत बड़ी चर्चित थी कि ‘जहर खाओ, न माहुर खाओ, मरना है तो पूर्णिया जाओ।’ इस नदी का यह स्वभाव था कि वह अपना रास्ता बदलती रहती थी। यह कब अपना रुख बदल लेगी, इसका अंदाजा लगाना...

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आपदा और राहत

 खास बात • देश में ६० फीसदी भूभाग अलग-अलग तीव्रता के भूकंप की आशंका वाला क्षेत्र है। तकरीबन ४ करोड़ हेक्टेयर भूभाग बाढ़ की आशंका  वाला क्षेत्र है, ८ फीसदी भूभाग चक्रवात और ६८ फीसदी भूभाग सूखे की आशंका वाला क्षेत्र है।* • प्राकृतिक आपदा के कारण १९९०-२००० के दशक में प्रति साल औसतन ४३४४ लोगों ने जान गंवायी और ३ करोड़ लोग किसी ना किसी तरह प्रभावित हुए।* • अक्तूबर १९९९ का उड़ीसा...

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