चुनाव आते ही अगर सभी दलों और सचेत लोगों को महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व का मसला याद आने लगता है, तो यह महिलाओं के प्रति उनके अनुराग या देश में महिलावादी आंदोलन का जोर बढ़ने का नतीजा नहीं है. अभी तक महिलाओं का अपना आंदोलन शहरों को छोड़ कर कहीं नहीं गया है. असल में इसका कारण हाल के चुनावों में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी है. बीते दो-ढाई दशक में अगर...
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तेलंगाना की तस्वीर- विनय सुल्तान
जनसत्ता 16 नवंबर, 2013 : तेलंगाना की सात दिन की यात्रा से पहले मेरे लिए तेलंगाना का मतलब था आंदोलनकारी छात्र, लाठीचार्ज, आगजनी, आत्मदाह, रवि नारायण रेड्डी और नक्सलबाड़ी आंदोलन। संसद के शीतकालीन सत्र में तेलंगाना के दस जिलों की साढ़े तीन करोड़ आबादी का मुस्तकबिल लिखा जाना है। मेरे लिए यह सबसे सुनहरा मौका था वहां के लोगों के अनुभवों और उम्मीदों को समझने का। पृथक राज्यों की मांग के पीछे...
More »दलित मुक्ति के मायने- मोहनदास नैमिशराय
जनसत्ता 14 अक्तबूर, 2013 : मुक्ति के दरवाजे खोलने वाले विशेष महापुरुषों और धर्मात्माओं की सूची बनाई जाए तो एक दर्जन ऐसी हस्तियां तो रही होंगी, जिनके आह्वान पर लाखों लोगों ने चलना स्वीकार किया। उन शख्सियतों के द्वारा किए गए आह्वान, उनके प्रेरक विचारों, उनके संघर्षों के दस्तावेजों के पन्नों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जाती है। यूरोप के इतिहास को देखें तो मार्टिन लूथर किंग ने गोरों की क्रूर परंपराओं...
More »विकास की आड़ में- अजेय कुमार
जनसत्ता 30 सितंबर, 2013 : यह महज संयोग है कि जिस दिन यानी तेरह सितंबर को सोलह दिसंबर के सामूहिक बलात्कार कांड के चारों दोषियों को अदालत द्वारा मौत की सजा सुनाई जा रही थी, भाजपा गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को औपचारिक रूप से प्रधानमंत्री पद का अपना उम्मीदवार घोषित कर रही थी। मोदी के राज में ही गुजरात का जनसंहार और हजारों महिलाओं और बालिकाओं की इज्जत से...
More »'हम ना मुसलमान हैं, ना हिंदू, हम तो गरीब हैं...'- दिलनवाज पाशा
मुज़फ़्फ़रनगर दंगों ने हज़ारों लोगों को शरणार्थी बना दिया। राहत कैंपों में पड़े लोगों की दुनिया चंद घंटों में बदल गई। शामली के लिसाढ़ गांव के मोहम्मद यासीन कांधला के एक राहत शिविर में रह रहे हैं। यासीन राहत कैंपों के शरणार्थियों की कहानी बयां कर रहे हैं। उनकी बातें समाज और सरकार के सामने कई गंभीर सवाल खड़े करती हैं वे कहते हैं, ''हमने कभी नहीं सोचा था कि हमारे...
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