लाल आतंक भारत के लिए एक बड़ा चैलेंज बनता जा रहा है। अब यह आतंक और भी घातक रूप ले सकता है क्योंकि इसकी नजर देश के युवाओं पर पड़ चुकी है। जी हां, अगर नक्सलियों की प्लानिंग कारगर साबित हुई तो ऐसा हो सकता है। माओवाद से प्रभावित देश के दूर-दराज के इलाकों में नक्सलियों ने अपना नेटवर्क बढ़ाने के लिए एक अनोखी रणनीति तैयार की है। इसके मुताबिक नक्सलियों ने अंदरूनी इलाकों में युवाओं...
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अमीरी-गरीबी के बीच बढ़ता फासला
नई दिल्ली [निरंकार सिंह]। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि 11वीं योजना के अंत तक नौ फीसदी और 12वीं पंचवर्षीय योजना में 10 फीसदी विकास दर का लक्ष्य होना चाहिए। इसके साथ यह भी सुनिश्चित करना होगा कि इसका फायदा समाज के हर वर्ग को मिले। इनकी सरकार लगातार समावेशी विकास के दावे कर रही है, लेकिन उसने विकास के उन तौर तरीकों को अपनाया है, जिससे समाज में विषमता बढ़ गई है। अमीरी और...
More »अब नहीं सोना पड़ता है भूखे पेट
पटना। सरकार द्वारा चलाई जा रही कल्याणकारी योजनाओं के कारण अब गरीबों को भूखे पेट नहीं सोना पड़ता है। सस्ते दर पर मिलने वाले अनाज के कारण अब रोटी की समस्या नहीं रह गई है। अंत्योदय योजना के तहत 2 रुपये की दर पर 21 किलोग्राम गेहूं तथा 3 रुपये की दर पर 14 किलोग्राम चावल दिया जाता है। जबकि बीपीएल परिवार को 25 किलो गेहूं-चावल मिलता है। अत्यंत निर्धनों को...
More »अभिशाप मानते हैं स्कूल का मुंह देखना
बांदा। उनके बच्चे भी खेलते हैं मगर जहरीले सांप और बिच्छुओं के साथ। स्कूल का मुंह देखना अभिशाप है लेकिन पांच साल के बच्चों को 'सांप की पिटारी' व 'बीन' थमा दी जाती है। बाल विवाह की प्रथा है और सांप नचाने व बीन बजाने की कला का प्रदर्शन ही शादी की शर्त है। हम बात कर रहे है सपेरा समाज की। उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद और कौशांबी से...
More »पत्थरों की खदानों से लौटा बचपन || बिदिसा फौजदार/शिरीष खरे ||
कभी बाल मजदूरी करने वाला महेन्द्र अब बच्चों के अधिकारों से जुड़ी कई लड़ाईयों का नायक है। महेन्द्र के कामों से जाहिर होता है कि छोटी सी उम्र में मिला एक छोटा सा मौका भी किसी बच्चे की जिंदगी को किस हद तक बदल सकता है। महेन्द्र रजक, इलाहाबाद जिले के गीन्ज गांव से है- जहां की भंयकर गरीबी अक्सर ऐसे बच्चों को पत्थरों की खदानों की तरफ धकेलती है। महेन्द्र...
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