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मध्य वर्ग : सब कुछ है आशियाना नहीं - अभिषेक कुमार सिंह

अक्सर कहा जाता है कि पिछले एक-डेढ़ दशक से देश में मध्य वर्ग का दायरा तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन ऐसा लगता नहीं कि सरकार की नीतियों में उसका कहीं कोई प्रतिनिधित्व है। एक मिसाल अफोर्डेबल हाउसिंग जैसे नारे की है, जिसमें निचले तबकों की जरूरतों को तो ध्यान में रखा जा रहा है, लेकिन मध्य वर्ग उसमें कोई जगह नहीं हासिल कर पाया है। नेशनल काउंसिल फॉर एप्लाइड...

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कोर्ट के फैसले से कहीं ऊर्जा सेक्टर के प्राण न निकल जाएं

सुप्रीम कोर्ट ने 194 कोयला खदानों का आवंटन अवैध ठहराने का ऐतिहासिक फैसला जरूर किया है, लेकिन आशंका जताई जा रही है कि देश और देशवासियों को इसकी बड़ी कीमत चुकाना पड़ सकती है। इन खदानों से कोयले का खनन नहीं हुआ तो देश अंधेरे में डूब सकता है, स्टील और सीमेंट जैसे ऊर्जा पर आश्रित क्षेत्र चरमरा सकते हैं। कोयला घोटाले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से हड़कंप है। सियासी...

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कम नहीं हो पा रहा कुपोषण- संदीप कुमार

सरकार का दावा है कि लोगों में कुपोषण घटा है. नेशनल सैंपल सर्वे आर्गनाइजेशन (एनएसएसओ) की 66वीं अध्ययन रिपोर्ट में बताया गया है कि दो तिहाई लोग पोषण के सामान्य मानक से कम खुराक ले पा रहे हैं. योजना आयोग का मानना है कि हर ग्रामीण को न्यूनतम 2400 किलो कैलोरी व हर शहरी को न्यूनतम 2100 किलो कैलोरी का आहार मिलना चाहिए. जमीनी हकीकत क्या है, यह भी सरकारी...

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देश में साढ़े चार लाख से ज्यादा परिवार बेघर !

आजादी के अड़सठ साल बाद भी देश में कम से कम साढ़े चार लाख परिवार बेघर हैं। बेघर परिवारों में से प्रत्येक का औसत तकरीबन चार( 3.9 व्यक्ति) व्यक्तियों का है। जनगणना के नये आंकड़ों(2011) से पता चलता है बीते एक दशक(2001-2011) के बीच बेघर लोगों की संख्या 8 प्रतिशत घटी है तो भी देश में अभी कुल 17.7 लाख लोग बिल्कुल बेठिकाना हैं। हालांकि देश की कुल आबादी में बेघर...

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बिहार-झारखंड धान उत्पादन के नये अगुवा

एक समय था जब भारत इतना भी गेहूं-चावल नहीं उगा पाता था कि अपने लोगों का पेट भर सके. लेकिन दौर बदला और 60 के दशक में आयी हरित क्र ांति से भारत के भंडार अनाज से भरने लगे. इस सफलता में अगर सबसे ज्यादा पसीना किसी का बहा, तो वो थे पंजाब और हरियाणा के किसान. उत्तर-पश्चिमी भारत के ये छोटे राज्य अपने मेहनतकश किसानों के बूते पूरे भारत...

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