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यूपी: लॉकडाउन में तंगी झेल रहे परिवारों पर बढ़ा एक और आर्थिक बोझ, 40 आईटीआई कॉलेजों की फीस 50 गुना तक बढ़ी

-गांव कनेक्शन, - उत्तर प्रदेश में अब 40 राजकीय औद्योगिक संस्थान (आईटीआई) निजीकरण की भेंट चढ़ गए हैं। यह निजीकरण दो चरणों में होगा। पहले चरण में 16 और दूसरे में 24 आईटीआई निजीकरण के हवाले किए जाएंगे। उत्तर प्रदेश में निजी आईटीआई संस्थानों की संख्या सरकारी संस्थानों से 10 गुना अधिक है। इस फैसले के बाद यह संख्या और भी अधिक हो जाएगी। इसी के साथ नए सत्र 2020 -21...

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लॉकडाउन में जेवर, फोन, जमीन तक बेचा, क़र्ज़ लिया, लेकिन सरकार के कामों से संतुष्ट हैं 74% ग्रामीण: गांव कनेक्शन सर्वे

-गांव कनेक्शन, कोरोना महामारी के संक्रमण को रोकने के लिए हुए लॉकडाउन से परेशान लोगों को मोबाइल और ज्वैलरी और जमीन तक बेचनी पड़ी, पड़ोसियों और दोस्तों से उधार और कर्ज़ लिया, बावजूद इसके 74% ग्रामीण, कोरोना महामारी से लड़ने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा उठाए गए कदमों से संतुष्ट दिखें। गांव कनेक्शन द्वारा कोविड-19 लॉकडाउन के बाद किए गए ग्रामीण भारत के पहले राष्ट्रव्यापी सर्वे में ऐसी कई रोचक...

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कोरोना और लॉकडाउन से पैसों की तंगी थी, दिव्यांग मां-बाप अपनी बच्ची बेचने चल दिए!

-लल्लनटॉप, कोरोना वायरस ने लोगों के फेफड़ों के साथ पेट पर भी हमला किया है. रोज़मर्रा के कामकाज पर असर पड़ने से रोज़ी-रोटी की दिक्कतें हैं. इसी बीच आंध्र प्रदेश से एक मामला सामने आया है. यहां के अनंतपुरम ज़िले में दिव्यांग पति-पत्नी ने अपनी 8 महीने की बच्ची को बेचने की कोशिश की. ‘द हिंदू’ की रिपोर्ट के मुताबिक, ये रोड्डम मंडल के बुचेरल्ला गांव का वाकया है. बच्ची को बेचने...

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लॉकडाउन से पैदा आर्थिक संकट से बढ़ रहीं आत्महत्याएं

-कारवां, 22 जून को उत्तर प्रदेश के आगरा शहर के जगदीशपुर इलाके के रहने वाले 53 साल के रघुवीर सिंह ने आत्महत्या कर ली. सिंह ने अपने सुसाइड नोट में लिखा, “हमारे पास में 25000 रुपए की नकदी थी लेकिन लॉकडाउन के वक्त घर में खाली बैठे-बैठे वह खत्म हो गई. इसके बाद हम क्या करते? इस आर्थिक तंगी से परेशान होकर मैं अपनी जिंदगी खत्म कर रहा हूं.” सिंह के...

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‘ग़रीबी ऐसी है कि मेरे मरने के बाद परिवार के पास अंतिम संस्कार के पैसे भी नहीं होंगे’

द वायर,  ‘उई दिन अच्छे भले उठल रहलन. खाना बनाइके हम पूछलीं कि खा लेईं. बोलनन अभी नाहीं खाइब. नहा के खाइब. नहाइन धोइन अउर बिना कछु कहले बाहर निकल गइन. हम समझी बीड़ी लेवे गइल होइहें. जबसे घर आइल रहिस बहुते कम बाहर जाइस. कभो कभार खाली बीड़ी लेवे बाहर निकलैं. खाना परोस हम राह देख लगौं. देर होके लगी तो पता कइनी कि कहीं भाई के घर त नाहीं...

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