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ग्राउंड रिपोर्ट: इन आदिवासियों की जमीन सिर्फ कागजों पर हैं; असल में आज भी गरीबी में जीने को हैं मजबूर

 गाँव कनेक्शन, 13 जुलाई  पट्टा जमीन के लिए 22 साल की लंबे संघर्ष के बाद, धनोरिया गाँव की रामप्यारी बाई को 1.35 हेक्टेयर जमीन मिली, लेकिन उन्हें इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी। 2 जुलाई को उसे जला दिया गया और 8 जुलाई को उनकी मौत हो गई। गाँव कनेक्शन ने मध्य प्रदेश के गुना जिले में अपने गाँव की यात्रा की और पाया कि कई आदिवासी परिवार हैं जिनके नाम पर...

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जेंडर

खास बात   साल 2001 की जनगणना के अनुसार भारत में कुल श्रमशक्ति की तादाद 40 करोड़ है जिसमें 68.37 फीसद पुरुष और 31.63 फीसद महिला कामगार हैं। @ तकरीबन 75.38%  फीसद महिला श्रमशक्ति खेती में लगी है। @ एफएओ के आकलन के मुताबिक विश्वस्तर पर होने वाले कुल खाद्यान्न उत्पादन का 50 फीसद महिलायें उपजाती हैं। # साल 1991 की जनगणना के अनुसार 1981 से 1991 तक पुरुष खेतिहरों की संख्या में 11.67 फीसदी की बढोतरी...

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उपभोक्ता अधिकार दिवस: डिजिटल लेनदेन में पारदर्शिता की राह अभी लंबी है

-जनपथ, 15 मार्च को मनाया जाने वाला विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस उपभोक्ताओं के अधिकारों एवं उनकी आवश्यकताओं के विषय में वैश्विक स्तर पर जागरूकता उत्पन्न करने का एक अवसर है। इस वर्ष कंज़्यूमर इंटरनेशनल के 100 देशों में फैले हुए 200 कंज़्यूमर समूहों ने “फेयर डिजिटल फाइनेंस” को विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस की थीम के रूप में चुना है। कंज़्यूमर इंटरनेशनल यह महसूस करता है कि तेजी से बढ़ती डिजिटल बैंकिंग...

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जीएम फूड के प्रवेश वाले मसौदे को क्यों खारिज कर रहे विशेषज्ञ

-न्यूजलॉन्ड्री, जीएम फूड को भारत में अनुमति देने वाले फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसआई) के सार्वजनिक किए गए प्रारूप पर लगातार आपत्तियां दर्ज कराई जा रही हैं. 3 फरवरी, 2022 को एफएसएसएआई के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को देश के 162 पेशेवर चिकित्सकोें ने पत्र भेजकर संयुक्त तौर पर प्रारूप के प्रावधानों पर अपनी आपत्ति दर्ज कराई है. पेशवर चिकित्सक समूह ने कहा है...

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गांव में अपराध: क्या सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं से फर्क पड़ता है?

-गांव सवेरा, ग्रामीण भारत में गरीबी के उन्मूलन और आर्थिक विकास हेतु अच्छी बुनियादी सुविधाओं तक पहुंच होना महत्वपूर्ण है। यह लेख, भारत मानव विकास सर्वेक्षण (आईएचडीएस) के 2004-05 और 2011-12 के आंकड़ों का विश्लेषण करते हुए दर्शाता है कि पक्की सड़कों से जुड़े गांवों के परिवारों में अपराध, श्रम बल की भागीदारी और पारिवारिक आय के सन्दर्भ में उन गांवों में रहने वालों की तुलना में बेहतर परिणाम पाए गए...

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