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एनजीओ को विदेशी धन का हक- डा.भरत झुनझुनवाला

कुछ महीने पहले इंटेलिजेंस ब्यूरो द्वारा दी गयी रपट के अनुसार, भारत के विकास में कुछ विदेशी धन से पोषित एनजीओ बाधा बन रहे हैं. एनजीओ द्वारा प्राप्त धन का दुरुपयोग रोकने के लिए सरकार ने हाल में आदेश दिया है कि इनके द्वारा 20,000 से अधिक का भुगतान चेक द्वारा ही किया जायेगा. ऐसा करने से एनजीओ के लिए धन का गैरकानूनी उपयोग करना कठिन हो जायेगा. तमाम देशों में...

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मध्‍यप्रदेश में डेढ़ लाख विद्यार्थियों को मिलेंगे स्मार्टफोन

भोपाल (ब्यूरो)। प्रदेश के सरकारी कॉलेजों में दाखिला लेने वाले प्रथम सेमेस्टर के सभी छात्रों को सरकार मुफ्त स्मार्ट-फोन देने जा रही है। राज्य शासन ने मौजूदा सत्र से ही इस स्कीम को लागू करने का निर्णय लिया है। वर्तमान शैक्षणिक सत्र 2014-15 में प्रदेशभर में नव-प्रवेशित लगभग 1 लाख 55 हजार विद्यार्थियों को यह स्मार्ट-फोन मिलेंगे। कॉलेज छात्र-छात्राओं को आईटी से सीधे जोड़ने और ई-लर्निंग को बढ़ावा देने के...

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दिल की जुबान या बाजार की भाषा?- प्रभु जोशी

यह निर्विवाद सचाई है कि तमाम युद्ध अस्त्रों-शस्त्रों से ही हारे या जीते नहीं जाते, बल्कि जय-पराजय के पलड़े का उठना या गिरना भाषा के सामर्थ्य से भी तय होता है। इसका प्रत्यक्ष चरितार्थ लोकतंत्र के महापर्व की तरह बताए गए लोकसभा के चुनावों में बहुत स्पष्टता के साथ दिखाई दिया। हर दल और हर एक नेता के लिए उसने लगभग युद्ध की शक्ल अख्तियार कर ली। गौर करना दिलचस्प...

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नई ईस्ट इंडिया कंपनी के दौर में- गौतम घोष

जल्दी ही हम नई सरकार चुन लेंगे और देश का अगला प्रधानमंत्री भी। धूमधाम से मतदान का लोकतांत्रिक पर्व निपट जाएगा। आजादी के 67 वर्षों बाद भी हम विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं। यह गर्व की बात है। पर आज हमारे सामने चुनौतियां कम नहीं हैं। हम देशवासियों के सामने प्रश्न खड़ा है कि सिर्फ सांविधानिक अधिकारों के प्राप्त हो जाने से ही हमारा संविधान और लोकतंत्र सफल मान लिया...

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बाजार नहीं, जनहितैषी नीतियां बनाये सरकार- जोसेफ स्टिग्लिज

- अर्थशास्त्र के लिए 2001 में नोबल पुरस्कार जीतनेवाले प्रो जोसेफ इ स्टिगलिट्स ने सोमवार को पटना में आद्री के स्थापना दिवस व्याख्यान में बाजार, सरकार व समाज की भूमिका से लेकर अमेरिका के संकट तक को बहुत आसान शब्दों में रखा और बताया कि पूंजीवाद को लगातार पुनर्परिभाषित करते रहने की जरूरत क्यों है. हमलोग उनके इस व्याख्यान के बरक्स अपनी सरकारों के नीतिगत फैसलों, बाजार की भूमिका और अपने समाज...

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