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राजद्रोह: जुबान बंद रखो, वरना...

-आउटलुक, “राजद्रोह कानून का दुरुपयोग चिंताजनक हद तक बढ़ा” तानाशाही और लोकलुभावनवाद का जोर जिस दौर में स्थापित लोकतंत्रों में भी बढ़ रहा है, राजद्रोह का कानून सरकार का पसंदीदा औजार बन गया है। भारत में पहले भी कई सरकारें राजनैतिक वजहों से राजद्रोह कानून का इस्तेमाल करती रही हैं, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से असहमति को गैर-कानूनी साबित करने के लिए इसका बड़े पैमाने पर दुरुपयोग भारी चिंताजनक है। इसे लोकतंत्र...

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इंटरव्यू- यातना देते वक्त पुलिस ने कहा 'तुम दलित हो और उसी तरह बर्ताव करो': मजदूर नेता नौदीप

-आउटलुक, पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा जमानत दिए जाने के कुछ दिनों बाद, दलित श्रम अधिकार कार्यकर्ता नौदीप कौर ने आउटलुक से हिरासत में यातना और किसानों और श्रमिकों के अधिकारों के लिए लड़ने के अपने संकल्प के बारे में बात की। पिछले महीने एक विरोध प्रदर्शन के दौरान हरियाणा पुलिस ने 24 वर्षीय युवती को हत्या और अन्य लोगों के साथ जबरन वसूली के आरोप में गिरफ्तार किया था। साक्षात्कार के कुछ अंश: आपने...

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चौरी चौरा के सरकारी पुनर्पाठ के ज़रिये गांधी और उनकी अहिंसा को खारिज करने की कवायदें

-जनपथ, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश में ‘चौरी चौरा’ शताब्दी समारोह के उद्घाटन के अवसर पर प्रधानमंत्री द्वारा  दिए गए सम्बोधन को भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के (हाल के दिनों में लोकप्रिय बनाए जा रहे) उस घातक पुनर्पाठ के रूप में देखा जा सकता है जो गांधी और उनकी अहिंसा को पूर्णरूपेण खारिज करता है। संघ परिवार और कट्टर हिंदुत्व की हिमायत करने वाली शक्तियों का गांधी विरोध जगजाहिर रहा है और अनेक बार...

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क्या भारत में गैर सरकारी संगठनों के लिए अब कोई जगह नहीं बची है?

-सत्याग्रह, हाल ही भारत में गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) से जुड़ी दो खबरों ने दुनिया भर में सुर्खियां बटोरीं. पहली खबर मानवाधिकारों के लिए लड़ने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल से जुड़ी है. भारत सरकार ने एमनेस्टी के बैंक खाते फ्रीज कर दिए जिसके बाद संस्था ने भारत में अपना काम बंद करने की घोषणा कर दी. दूसरी खबर विदेशी अंशदान नियमन अधिनियम (एफसीआरए) में किया गया बदलाव है. इन दो...

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विशेष: जब भगत सिंह ने किया किसानों को संगठित करने का प्रयास

-न्यूजक्लिक, भगत सिंह के बारे में आमतौर पर यह कहा जाता है कि वे थे तो समाजवादी विचारों के लेकिन उन्होंने कभी किसानों-मजदूरों को संगठित करने का प्रयास नहीं किया। प्रोफेसर बिपन चन्द्र और एस. इरफ़ान हबीब ने इसे भगत सिंह और साथियों की एक बड़ी कमी बताया है। लेकिन जब मैं अपनी पीएचडी थीसिस लिखने के लिए शोध कर रहा था तो कुछ ऐसे चौंकाने वाले तथ्य सामने आये जिनका...

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