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बुंदेलखंड में कुपोषण की समस्या पर नीति निर्माताओं को जरूर ध्यान देना चाहिए!

हाल की मीडिया रिपोर्ट्स यह बताती हैं कि आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र को लगभग रु. 6,300 करोड़ की परियोजनाओं की घोषणाएं की गई हैं, जिनमें झांसी में टैंक रोधी मिसाइलों के प्रणोदन प्रणाली के लिए 400 करोड़ रुपये का संयंत्र भी शामिल है. 18 नवंबर, 2021 को झांसी नोड (उत्तर प्रदेश रक्षा औद्योगिक गलियारे से संबंधित) में पहली परियोजना के लिए नींव...

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समावेशी कृषि हो 2022 के लिए विकास का रोडमैप

-रूरल वॉइस, अब देश के नीति निर्माताओं को अभी की जरूरत, वर्तमान संकट का उपाय जैसे शब्दों को नकार कर देश की समस्याओं के लिए स्थायी समाधान तलाशने होंगे। भ्रष्टाचार, निरक्षरता, शिक्षा व्यवस्था, स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली, गरीबी, जलवायु परिवर्तन, घटता भूजल स्तर, वायु प्रदूषण, ठोस अवशेष, महिला सशक्तीकरण, बेरोजगारी, कृषि संकट, बाढ़, सुखाड़, लंबित न्याय, सकल घरेलू उत्पाद आदि मुद्दे आज देश के सामने हैं जिनको प्राथमिकता के आधार पर हल...

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किसान आंदोलन के बीच वित्त मंत्रालय ने रखा था कृषि संबंधी योजनाओं के बजट में कटौती का प्रस्ताव

-द वायर, केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन विवादित कृषि कानूनों के खिलाफ जब देश के विभिन्न हिस्सों में किसान प्रदर्शन कर रहे थे, इसी बीच वित्त मंत्रालय ने कृषि से जुड़ी कई महत्वपूर्ण योजनाओं जैसे कि खाद्य सुरक्षा मिशन, सिंचाई, जैविक खेती, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना इत्यादि के बजट में कटौती करने को कहा था. मंत्रालय ने दावा किया था कि इनमें से अधिकतर योजनाओं से ‘कोई लाभ’ नहीं हो रहा है....

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कृषि क़ानून और खाद्य सुरक्षा

-न्यूजक्लिक, मोदी सरकार ने जो तीन कृषि कानून हड़बड़ी में संसद से पारित करवाए हैं, वे किसान उत्पादकों को सीधे कॉर्पोरेट खरीदारों का सामना करने के लिए छोड़ देते हैं, और तो और उनके बीच राज्य का कोई हस्तक्षेप ही नहीं रहेगा। सरकार का दावा है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था के रूप में उसका हस्तक्षेप तो फिर भी बना रहेगा। लेकिन, यह मानने वाली बात नहीं है। अगर एमएसपी की...

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खत्म होने के कगार पर है 15वीं शताब्दी में विकसित एक प्राचीन और वैज्ञानिक व्यवस्था

-डाउन टू अर्थ, पश्चिमी राजस्थान के पारंपरिक जल प्रबंधों की गुण-गाथा तब तक पूरी नहीं होगी जब तक हम खड़ीनों की चर्चा न कर लें। यह बहुत पुरानी और वैज्ञानिक व्यवस्था है। शुष्क क्षेत्र के वैज्ञानिकों का मानना है कि इनकी आज भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। खड़ीन या धोरा की तकनीक 15वीं सदी में जैसलमेर के पालीवाल ब्राह्मणों ने विकसित की थी। दरबार उन्हें जमीन देते थे और...

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