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न्यूज क्लिपिंग्स् | समावेशी कृषि हो 2022 के लिए विकास का रोडमैप

समावेशी कृषि हो 2022 के लिए विकास का रोडमैप

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published Published on Jan 2, 2022   modified Modified on Jan 4, 2022

-रूरल वॉइस,

अब देश के नीति निर्माताओं को अभी की जरूरत, वर्तमान संकट का उपाय जैसे शब्दों को नकार कर देश की समस्याओं के लिए स्थायी समाधान तलाशने होंगे। भ्रष्टाचार, निरक्षरता, शिक्षा व्यवस्था, स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली, गरीबी, जलवायु परिवर्तन, घटता भूजल स्तर, वायु प्रदूषण, ठोस अवशेष, महिला सशक्तीकरण, बेरोजगारी, कृषि संकट, बाढ़, सुखाड़, लंबित न्याय, सकल घरेलू उत्पाद आदि मुद्दे आज देश के सामने हैं जिनको प्राथमिकता के आधार पर हल करने की जरूरत है।

समस्या यह है कि नीति निर्माता, समाजसेवी, जन प्रतिनिधि, शासन, प्रशासन सभी वर्तमान समस्याओं का एक-एक हल करने में अपनी ऊर्जा लगाते हैं। अगर “एकै साधे सब सधे, सब साधे सब जाय” पर ध्यान दिया जाए तो शायद देश के विकास के लिए एक उचित रास्ता हम सब तय कर सकेंगे। इसलिए जरूरत है एक न्याय संगत अर्थव्यवस्था की, क्योंकि विश्व असमानता रिपोर्ट के अनुसार भारत एक "गरीब और बहुत असमान देश, एक समृद्ध अभिजात वर्ग के साथ" के रूप में खड़ा है, जहां शीर्ष 10 फीसदी के पास कुल राष्ट्रीय आय का 57 फीसदी हिस्सा है, जिसमें शीर्ष 1 फीसदी के पास 22 फीसदी है, जबकि नीचे के 50 फीसदी के पास सिर्फ 13 फीसदी है। इसके अलावा कोविड महामारी का दौर अरबपतियों के लिए स्वर्णयुग साबित हुआ। यह सिद्ध करता है कि जिन्दा रहने के लिए ‘कौशल’ व जीने के लिए ‘मानवीय’ जैसे पाठ्यक्रम शिक्षा में शामिल नहीं होंगे तब तक एक सर्कुलर इकोनॉमी स्थापित नहीं होगी।

शिक्षा, स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था और सकल घरेलू उत्पाद, कृषि, रोजगार, जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं में से किस मुद्दे को केंद्र में रखकर कार्य किया जाए जिसमें सभी समस्याओं का हल निकल सके। स्वास्थ्य को लेकर फिर से बिल गेट्स ने चेतावनी दी है कि अगली महामारी के लिए हम तैयार नहीं हैं। जलवायु परिवर्तन की समस्या से छुटकारा पाने के लिए फ्यूल व कोयले का उपयोग कम करने की बात की जाती है, कोई डार्विन के सिंद्धांत पर खेती करने की बात करता है, देश के नीति निर्माता किसान की आय बढ़ाने के लिए सिंचाई के लिए बांध बनाने की बात करते हैं, पलायन रोकने के लिए उद्योगों की, कभी बच्चों को अपने शरीर को समझने (सेक्स) के लिए शिक्षा पर जोर देने की बात की जाती है। यानी अलग-अलग तरीके से समस्याओं को हल करने की बात होती है।

मेरा मानना है कि भारत जैसे देश में अहिंसात्मक कृषि ही ऐसा माध्यम है जिनसे सभी समस्याओं का हल पाया जा सकता है। अहिंसात्मक कृषि से ही जल, जमीन, जैवविविधता, जलवायु परिवर्तन, मिट्टी, रोज़गार, कुपोषण, महिला सशक्तीकरण, पलायन, पशु, अर्थव्यवस्था, शिक्षा, स्वास्थ्य, सर्वमान्य बराबरी सभी का हल मिल सकता है। इसलिए सरकार को कृषि को केंद्र में रखकर योजनाएं बनानी चाहिए, तभी देश सर्व जन हिताय, सर्व जन सुखाय के सिद्धांत को प्रतिपादित कर सकता है।

अभी तक देश में विकास के लिए जो भी योजनाएं बनीं उनमें से हरित क्रांति ने देश की उपजाऊ मिट्टी, स्वास्थ्य, पशुधन आदि को, बांधों ने नदियों को, अर्थव्यवस्था ने मानवता व पर्यावरण को, निगल लिया। उदाहरण के लिए, जब खाद्य सुरक्षा की बात आती है, तो जनसंख्या भारत के लिए एक दायित्व बन गई है। दुनिया के कुल भूमि क्षेत्र के केवल 2.4 प्रतिशत के साथ भारत के पास दुनिया की कुल आबादी का 14 प्रतिशत हिस्सा है। जल संसाधनों का लगभग 4% हिस्सा है। यही कारण है कि भारतीय जल की कमी से परेशान हैं। 1951 में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 5,177 घन मीटर थी। 2011 की जनगणना के आंकड़ों में यह घटकर 1,545 घन मीटर हो गई। यानी 60 वर्षों में लगभग 70 प्रतिशत की गिरावट हुई है।

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


गुंजन मिश्रा, https://www.ruralvoice.in/opinion/inclusive-agriculture-is-the-right-roadmap-for-development-in-2022.html


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