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खून और स्याही

-द कारवां, वह मेरे जीवन का सबसे वीभत्स दृश्य था. दिल्ली पुलिस के सब्जी मंडी स्थित मुर्दाघर में मैंने जो मंजर देखा वह ऐसा था कि मेरे साथी पत्रकार दीपांकर डे सरकार उल्टियां करने लगे थे. वह 1 नवंबर 1984 का दिन था और इंदिरा गांधी को उनके सिख सुरक्षागार्डों द्वारा गोली मारे जाने के 24 घंटे हुए थे. भयानक हिंसा में निर्दोष सिखों को निशाना बनाया जा रहा था. यह मध्यकालीन न्याय...

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जेट्टी पर ज़िंदगी: मलिम में मालिक और मछलियों के बीच खट रहे प्रवासी आदिवासियों की व्यथा-कथा

-जनपथ, गोवा में गणपति विसर्जन की छुट्टियों के बीच वह एक ऊंघती हुई दोपहर थी। प्रवासी मज़दूरों के बीच काम करने वाली संस्था ‘दिशा फाउंडेशन’ के कुछ साथियों के साथ मैं एक थोक मछली बाज़ार में खड़ा था। बाज़ार बंद था। इलेक्ट्रॉनिक तराजुओं की लाल बत्तियां गुल थीं। मछलियाँ नहीं आयी थीं। ग्राहक ग़ायब थे। मालिक नदारद। अलबत्ता उनके मुलाज़िम मोबाइल की नशीली दुनिया में खोये हुए थे। तभी किसी के...

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आतंकरोधी कानून/राज्य दर्पण/डरो, डरो, जल्दी डरो

-आउटलुक, पता नहीं, बुजुर्ग आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता स्टेन स्वामी की मौत ने झकझोरा या नहीं, लेकिन अरसे बाद सुप्रीम कोर्ट में राजद्रोह की प्रासंगिकता पर सवाल उठा और कई हाइकोर्टों से यूएपीए, एनएसए जैसे कानूनों के दुरुपयोग पर तीखे फैसले आए तो सुलगते सवाल ज्वाला की तरह फूट पड़े। बेशक, हाल के कुछ वर्षों में असहमति और असंतोष को दबाने की खातिर इन कानूनों के दुरुपयोग के मामले बेहिसाब बढ़े हैं,...

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पंजाब के 6733 लापता लोगों की जानकारी जुटाने वाले वकीलों पर क्राइम ब्रांच का शिकंजा

-कारवां, गृह मंत्रालय द्वारा सूचना और प्रसारण मंत्रालय को ब्रिटेन के वकील सतनाम सिंह बैंस के बारे में जानकारी भेजने के लगभग दो साल बाद 19 अप्रैल को चंडीगढ़ पुलिस ने बैंस के खिलाफ एफआईआर दर कर ली है. सतनाम ने 2008 में सिविल सोसाइटी ग्रुप पंजाब डॉक्यूमेंटेशन एंड एडवोकेसी प्रोजेक्ट (पीडीएपी) की स्थापना की थी. पीडीएपी का उद्देश्य पंजाब में अशांति से भरे 1984 और 1995 के बीच के सालों में...

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मोदी सरकार के आने बाद से नहीं हुआ किसानों की आमदनी का सर्वे

-न्यूजलॉन्ड्री, एक तरफ जहां केंद्र सरकार साल 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने की बात कर रही है वहीं दूसरी तरफ साल 2013 के बाद से राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने किसानों की आय को लेकर अपनी रिपोर्ट प्रकाशित नहीं की है. यानी नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद से किसानों की आमदनी को लेकर कोई सर्वेक्षण नहीं किया गया है. बीते 8 फरवरी को कई सांसदों ने सामूहिक...

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