जलवायु परिवर्तन, भूख, कुपोषण, बढ़ती गरीबी, घटते संसाधन, ये सभी ऐसी समस्याएं हैं जिनसे आज सारी दुनिया जूझ रही है। अरबों रुपए इन समस्याओं के हल के लिए अंतराष्ट्रीय सम्मेलनों पर खर्च किए जा चुके हैं। आगे भी किए जाएंगे। पर हल तब भी शायद ही निकले। तो क्या किया जाए? गांधी-विचारों में रची-बसी, स्वाश्रयी महिला सेवा संघ (सेवा), अमदाबाद की संस्थापक और गुजरात विद्यापीठ की चांसलर इला भट्ट के...
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तुम बेड़ियां काट सको तो-- सुजाता
जब शादी की बात हो, तो अक्सर सुनने में आता हैं- जोड़ियां ऊपर बनती हैं. तो क्या ऊपर ही टूटती भी होंगी? लेकिन ऐसा है नहीं. विवाह पवित्र बंधन है और विवाह का टूटना एक सामाजिक कलंक मान लिया गया है. जोड़ियां बनानेवाले ने उनमें चक्रव्यूह के अभिमन्यु की तरह जाने का आसान रास्ता तो बनाया है, निकलने का नहीं. जैसे शादी में दोनों को ‘कुबूल' होना जरूरी है, लेकिन...
More »संकट में वन्य जीव-- रीता सिंह
वर्ल्ड वाइल्ड फंड एवं लंदन की जूओलॉजिकल सोसायटी की हालिया रिपोर्ट चिंतित करने वाली है कि 2020 तक धरती से दो तिहाई वन्य जीव खत्म हो जाएंगे। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर में हो रही जंगलों की अंधाधुंध कटाई, बढ़ते प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के कारण पिछले चार दशकों में वन्य जीवों की संख्या में भारी कमी आई है। रिपोर्ट के मुताबिक 1970 से 2012 तक...
More »काहे रे नदिया तू बौरानी!-- अनिल रघुराज
पानी गले तक आ जाये, तो औरों का भरोसा छोड़ कर खुद ही सोचना और खोजना पड़ता है कि बचने का क्या रास्ता है. दो साल के सूखे के बाद सामान्य माॅनसून ने पूरब से लेकर उत्तर भारत के तमाम इलाकों में यही हालत कर दी है. शहरों, कस्बों व गांवों में लोग घरों से निकल कर सड़कों पर आ गये हैं. नदियां बावली हो गयी हैं. कई जगह तो...
More »भ्रष्टाचार और प्रदूषण का खनन-- रामचंद्र गुहा
जब नई सदी की शुरुआत हुई, तो मेरे गृह राज्य कर्नाटक में आर्थिक उदारीकरण के ‘पोस्टर बॉय' थे- एन आर नारायण मूर्ति। मध्यवर्गीय परिवार से निकले इस शख्स के पास उद्यमशीलता का कोई पारिवारिक अनुभव नहीं था। नारायण मूर्ति ने अपनी जैसी सोच वाले छह अन्य लोगों को जोड़ा और इन्फोसिस की नींव रखी। बहुत मामूली शुरुआत हुई थी इसकी, मगर साल 2000 तक इस कंपनी का मुख्यालय न सिर्फ बेंगलुरु...
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