हर साल देश में करीब पचास हजार करोड़ रुपए का अनाज बर्बाद हो जाता है। एक ऐसे देश में जहां करोड़ों की आबादी को दो जून ठीक से खाना नहीं नसीब होता, वहां इतनी मात्रा में अनाजों की बर्बादी किस तरह की कहानी कहती है? इसकी पड़ताल कर रहे हैं रविशंकर। यह विडंबना नहीं, उसकी पराकाष्ठा है कि सरकार किसानों से खरीदे गए अनाज को खुले में छोड़कर अपना कर्तव्य पूरा...
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आयात नहीं, दाल का उत्पादन बढ़ाएं-- बाबा मायाराम
जब आग लगती है, तभी हम कुआं खोदने के बारे में सोचते हैं। दालों के मामले में भी ऐसा ही हुआ। जब दाल के दाम इतने बढ़ गए कि उसे खाना मुश्किल हो गया, तब जाकर सरकार जागी। अब आनन-फानन में कई फैसले लिए जा रहे हैं। दाल आयात करने का फैसला लिया गया, व्यापारियों के गोदामों और दाल मिलों में छापे मारे गए, स्टॉक की क्षमता तय की गई।...
More »पर्यावरण के नजरिए से आहार- रमेश कुमार दुबे
अगर गोमांस (बीफ) के बढ़ते इस्तेमाल को पर्यावरण की दृष्टि से देखा जाए तो इतना विवाद न हो। गहराई से देखा जाए तो आज जलवायु परितर्वन, वैश्विक तापवृद्धि, भुखमरी, नई-नई बीमारियां प्रत्यक्ष रूप से मांसाहार के बढ़ते चलन से जुड़ी हुई हैं। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनइपी) के मुताबिक एक मांस-बर्गर तैयार करने में तीन किलोग्राम कार्बन उत्सर्जित होता है। ऐसे में धरती की रक्षा के लिए मांस की बढ़ती...
More »कुपोषण से जूझता भारत- निकोलस क्रिस्तॉफ
हर वर्ष की तरह इस बार भी मैं अपनी 'विन ए ट्रिप' यात्रा पर भारत आया। भारतीय गांवों की यात्रा के दौरान मेरे साथ थे प्रतियोगिता के विजेता स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी के ऑस्टिन मेयर। इस यात्रा के मूल में यह सवाल था, 'आखिर क्या वजह है कि भारत के लाखों बच्चे शारीरिक-मानसिक तौर पर कुपोषित रह जाते हैं?' भारत एक मजबूत लोकतंत्र हैं, जो मंगल तक अपना उपग्रह भेज चुका है। पर...
More »गरीब की थाली से गायब होती दाल-- अश्विनी महाजन
अभी महंगे प्याज से त्रस्त जनता को आंशिक राहत मिलने लगी थी कि पिछले लगभग दो महीने से दाल, खासकर अरहर और मूंग की दालों के भाव आसमान छू रहे हैं। बाजार में अरहर की दाल 187-210 रुपये और उड़द की दाल 195 रुपये प्रति किलो बिक रही है। दालों के भाव पिछले कुछ वर्षों से ऊंचे बने हुए हैं और यह आम जन की पहुंच से बाहर होती जा...
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