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उदार पीढ़ी का उद्वेग- सुधीश पचौरी

जनसत्ता 4 जनवरी, 2012: पिछले करीब पंद्रह दिनों में एक युवा विमर्श प्रकट हुआ है, जो कई वजहों से  ऐतिहासिक है। उसके कारक, लक्ष्य और परिणाम नए हैं। वह प्रकटत: स्वत:स्फूर्त स्वभाव से असंगठित और अराजनीतिक प्रतीत होता है। वह ‘परदुख कातर’ है। पुलिस प्रशासन और सत्ता से अन्याय के बरक्स न्याय के सवाल कर रहा है। वह बर्बरता के विरोध में है। वह एक ऐसा नागरिक समाज चाहता है, जिसमें...

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यह नया कितना पुराना- कुमार प्रशांत

जनसत्ता 14 अगस्त, 2012: देश को नए मंत्री मिल गए हैं। देश की गहरी समस्याओं के जनक रहे पुराने लोग नई पोशाकों में आ खड़े हुए हैं। देखते हैं तो उनके हाथों में तलवारें भी वही बाबाआदम के जमाने की हैं- कागजी! सारे देश में सूखा पड़ा है और अभी अचानक बिजली चले जाने का नया रोग भी गहरा अंधेरा बनाने लगा है। इसे अगर एक प्रतीक से जोड़ कर...

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उत्तर प्रदेश में फिर सड़कों पर उतरे गन्ना किसान, कई जगह प्रदर्शन

अंबरीश कुमार लखनऊ, 12 जुलाई। उत्तर प्रदेश में किसान फिर सड़कों पर उतरने लगे हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कई जगहों पर धरना प्रदर्शन के साथ लाठी-गोली से प्रतिकार शुरू हो गया है। राज्य में चीनी मिलों पर किसानों के करीब साढ़े चार हजार करोड़ रुपए बकाया हैं, जिसमे ज्यादातर बकाया निजी क्षेत्र की दर्जन भर चीनी मिलों पर है, तो बाकी सहकारी क्षेत्र की मिलों पर। मुजफ्फरनगर में बकाया गन्ना मूल्य...

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गांधी और आंबेडकर का रिश्ता- श्रीभगवान सिंह

जनसत्ता 7 जुलाई, 2012: पिछले दो-तीन दशकों का एक बड़ा राजनीतिक यथार्थ यह है कि राष्ट्रपिता के रूप में समादृत गांधी के ऊपर डॉ भीमराव आंबेडकर को न सिर्फ खड़ा करने, बल्कि गांधी को आंबेडकर और दलित विरोधी भी सिद्ध करने की कोशिश लगातार की जा रही हैं। यह सब हो रहा है आंबेडकर के नाम पर दलित राजनीति करने वाले आंबेडकरवादियों द्वारा, क्योंकि इसके जरिए उनके लिए एक समुदाय...

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खबरों का ट्विटरीकरण!- राजदीप सरदेसाई

हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान मैंने बाबा रामदेव, जो टेली-फ्रेंडली योगगुरु के साथ ही अब कालेधन के विरुद्ध मोर्चा खोल लेने वाले आंदोलनकारी भी बन गए हैं, से पूछा कि उनकी संपदा का राज क्या है? उन्होंने तपाक से कहा : ‘इस तरह के प्रश्न क्यों पूछ रहे हो? तुम भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई में हमारे साथ हो या दुश्मनों के साथ?’ आह! भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ रहे...

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