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राजनीतिक दलों की बढ़ती वित्तीय आय में अपारदर्शी चुनावी चंदा

साल 2019 बीतते-बीतते प्रमुख राजनीतिक दलों की वित्तीय आय और इलेक्टोरल बॉन्ड यानि चुनाव में चंदे की नई व्यवस्था से जुड़ी कई खबरें और चर्चाएं सुनने को मिलीं. लोकतंत्र की बेहतरी के लिए काम करने वाली कई संस्थाओं ने और पत्रकारों ने आरटीआइ कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर चुनावी चंदा लेने के इलेक्टोरल बॉन्ड जैसे अपारदर्शी तंत्र पर सवालिया निशान खड़े किए. इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री पर रोक लगाने की मांग...

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बुजुर्गों को पेंशन देने के पैसे नहीं, और एनआरसी पर लाखों करोड़ खर्च रही सरकार

21 जनवरी को दिल्ली के 20 से अधिक संगठनों मिलकर जंतर मंतर पर पेंशन परिषद के बैनर तले पेंशन के मुद्दे पर ‘पेंशन नहीं तो वोट नहीं’ धरने का आयोजन किया। इस धरना रैली में दिल्ली एनसीआर के कोने-कोने से हजारों की संख्या में लोग एकजुट हुए और मंच से अपनी तकलीफें साझा की। इसमें सेक्स वर्कर, विकलांग, बेघर, असंगठित क्षेत्र के मजदूर, ट्रांसजेंडर, एकल व विधवा महिलाएं, बुजुर्ग अपने...

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रेप की धमकी, गालियां और भद्दी बातें...ये सब झेलती हैं भारत की महिला नेताएं

बलात्कार की धमकियां, गालियां, महिलाविरोधी कमेंट और भद्दी बातें. भारत की महिला नेताएं ये सब झेलती हैं. 'ट्रोल पेट्रोल इंडिया: एक्सपोज़िंग ऑनलाइन अब्यूज़ फ़ेस्ड बाय वूमन पॉलिटिशियंस' नाम के एक नए अध्ययन में पता चला है कि भारतीय महिला नेताओं को ट्विटर पर लगातार दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है. एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया की मदद से किए गए इस अध्ययन में 95 भारतीय महिला नेताओं के लिए किए गए ट्वीट्स की समीक्षा...

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जैसा बताया जाता है, क्या नेताजी और महात्मा गांधी के बीच वैसी ही दूरियां थीं?

आज नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जन्मदिवस पर जब आप ये शब्द पढ़ रहे होंगे, उसी समय सोशल मीडिया से लेकर अन्य मंचों पर नेताजी के बरक्स महात्मा गांधी की भी चर्चा चल रही होगी. ठीक है कि भारत की आज़ादी का कोई भी विमर्श महात्मा गांधी का नाम लिए बिना पूरा नहीं हो पाता. लेकिन आज नेताजी को महात्मा के खिलाफ ऐसे ही खड़ा किया जा रहा है मानो...

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विषमता का विकास

पिछले कई सालों से एक जो नारा सबसे ज्यादा प्रचारित रहा है वह है ‘सबका साथ सबका विकास’! चूंकि खुद भाजपा सरकार की ओर से यह नारा सबसे ज्यादा प्रचारित किया गया है, इसलिए कायदे से अपेक्षा यह थी कि देश के सभी तबकों के लोगों को विकास के तमाम अवसरों में बराबर की सहभागिता मिलती और इस तरह विकास ज्यादा समावेशी होता। लेकिन यह बेहद निराशाजनक तस्वीर है कि...

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