केंद्र सरकार ने आईआईटी, केंद्रीय विश्वविद्यालयों समेत तमाम केंद्रीय शिक्षण संस्थानों में विदेशी प्रोफेसरों की नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की दी है। इन प्रोफेसरों को महीने में 20 घंटे बढ़ाने के करीब साढ़े सात लाख रुपये मिलेंगे जो भारतीय प्रोफेसरों के वेतन से तीन गुना ज्यादा है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने कहा कि इस साल ऐसे एक हजार विदेशी शिक्षकों की नियुक्ति का लक्ष्य है लेकिन अभी विभिन्न संस्थानों के लिए...
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छोटी-सी उम्र में लिया समाज बदलने का संकल्प, साइकिल पर चला रही चलंत पुस्तकालय
आज जिससे भी बात कीजिए, यही कहता है कि समाज में बहुत गिरावट आ गयी है. यह बात मानते सब हैं, पर करता कोई कुछ नहीं. लेकिन, लीक छोड़ चलनेवाले कुछ बिरले होते हैं, जो आलोचना भर से संतुष्ट नहीं होते और बदलाव के लिए कदम बढ़ा लेते हैं. ऐसी ही है बिहार की सुपुत्री साधना. उसने जो साधना शुरू की है, अगर वह एक आंदोलन की शक्ल ले ले,...
More »उपलब्धियों से अधिक चुनौती -- अजय बोस
केंद्र की सत्ता में एक साल पूरे होने के अवसर पर भाजपा चाहे कितना भी जश्न क्यों न मनाए, वास्तविकता यह है कि उसकी परेशानी छिपाए नहीं छिप रही। अब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि कॉरपोरेट हितैषी की रही है। लेकिन प्रधानमंत्री बनने के बाद से उनकी यह छवि कमोबेश खंडित होती दिखाई देती है। पिछले दिनों खत्म हुए बजट सत्र में उनकी कोशिशों के बावजूद ऐसा कुछ नहीं हुआ,...
More »आजादी के बाद पहली बार चुआपानी के जोसेफ ने किया मैट्रिक पास
आजादी के बाद किसी गांव में पहली बार कोई मैट्रिक पास किया है. यह खबर राज्य में शिक्षा व्यवस्था की बदहाली या जागरूकता का अभाव को दर्शाता है. यह राज्य सरकार के लिए सोचनीय भी है. लेकिन, इस परिणाम ने ग्रामीणों में शिक्षा के प्रति एक नया संचार फैलाया है. ऐसी उम्मीद है. रानीश्वर : रानीश्वर पंचायत अंतर्गत वृंदावनी पंचायत के चुआपानी गांव का जोसेफ टुडू आजादी के बाद पहला ऐसा...
More »'कैम्पस' पर बढ़ रहा है दबाव - रामचंद्र गुहा
कोई एक साल पहले जब स्मृति ईरानी को केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री बनाया गया था, तो मैं उनकी नियुक्ति पर नाक-भौं सिकोड़ने वाले लोगों में शामिल नहीं था। मैंने यूपीए सरकार के ऐसे विदेशी डिग्रीधारी एचआरडी मिनिस्टरों को देखा था, जिन्होंने अपने विभागीय दायित्वों में न के बराबर दिलचस्पी दिखाई थी। उनकी तुलना में स्मृति ईरानी कहीं ऊर्जावान और सक्रिय नजर आती थीं। उन्हें देखकर उम्मीद जगती थी कि...
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