जनसत्ता 12 जुलाई, 2012: गंगा का नाम लेने मात्र से पवित्रता का बोध होता है। यह देश की एकता और अखंडता का माध्यम और भारत की जीवन रेखा के अतिरिक्त और बहुत कुछ है। गंगा जीवनदायिनी और मोक्षदायिनी दोनों है। आज भी लगभग तीस करोड़ लोगों की जीविका का माध्यम है। मगर पिछली डेढ़ सदी से गंगा पर हमले पर हमले किए जा रहे हैं और हमें जरा भी अपराध-बोध नहीं...
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जमीन पक रही है- भारत डोगरा
जनसत्ता 23 जून, 2012: अगर हमारे देश में ग्रामीण निर्धन वर्ग और विशेषकर भूमिहीन वर्ग को टिकाऊ तौर पर संतोषजनक आजीविका मिले इसके लिए भूमि-सुधार बहुत जरूरी है। इसके अलावा, अन्यायपूर्ण भूमि अधिग्रहण द्वारा जिस तरह तेजी से बहुत-से किसानों खासकर आदिवासियों की जमीन लेकर उन्हें भूमिहीन बनाया जा रहा है, उस पर रोक भी लगानी होगी। ऐसे महत्त्वपूर्ण सवालों के न्यायसंगत समाधान के लिए इस वर्ष के आरंभ से एक प्रयास...
More »शहर अंदर ‘समंदर’- शिरीष खरे की रिपोर्ट(तहलका, हिन्दी)
यह राजस्थान में जोधपुर शहर के यूएस बूट हाउस का एक जादुई बेसमेंट है. जादुई इसलिए कि यह शहर शुष्क रेगिस्तान के मुहाने पर बसा है लेकिन इस बेसमेंट में बारहमासी पानी रिसता रहता है. हालांकि इसकी नींव में कई सालों से पानी रिसता रहा है, लेकिन बीते दो साल से पानी इस स्तर तक बढ़ गया कि पांच पंपों से 24 घंटे पानी उलीचने पर भी यह कम होने का...
More »उन्नींदा कानून, हरियाली का खून- पुष्कर सिंह रावत
न नियमों की परवाह और न नैतिकता का बंधन। उन्नींदे कानून के साए में ही हरियाली का खून हो गया। विकास की आड़ में विनाश का यह खेल हुआ उत्तरकाशी जिले के डुण्डा ब्लाक में। सड़क निर्माण के दौरान निकला मलबा वहीं जंगल में उड़ेल दिया गया। बोल्डर (चट्टान से टूटे बड़े पत्थर) और मलबे के नीचे कुचले हुए सौ से ज्यादा हरे-भरे पेड़ों की कराह सरकारी महकमों को नहीं...
More »इस बार गेंहूं की होगी बंपर पैदेवार, फिर भी नहीं मिलेगी खुशी
भोपाल। रायसेन जिले के बिसनखेड़ा गांव से सटा बूचा सिंह का खेत। उसमें लहलहाती गेहूं की फसल। इस किसान के चेहरे से खुशी साफ झलक रही है। उसकी मेहनत और मौसम की मेहरबानी का नतीजा है कि इस साल उसे अपने खेत से 40 बोरी तक गेहूं मिल जाएगा जो पिछले साल से करीब डेढ़ गुना ज्यादा होगा। यह स्थिति बूचा सिंह तक सीमित नहीं है। इस साल प्रदेश में गेहूं का रिकार्डतोड़...
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