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भारत और इंडिया का फर्क- सुनील खिलनानी

हमारा यह कहना सही है कि भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान और वैश्विक कारोबार में अपनी ऐतिहासिक हिस्सेदारी को फिर से प्राप्त कर रहा है। लेकिन इसके साथ-साथ कुछ अन्य अहम तथ्यों पर गौर करने की जरूरत है। उदाहरण के लिए, गरीबी खत्म करने, जनकल्याण के लिए कुछ मूलभूत सुविधाएं जुटाने और नए खतरों को कम करने की क्षमता अब हमारे भीतर है। यह क्षमता होने के बावजूद हमने...

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नाबालिग बच्चों के साथ फ्रांसिसी नागरिक गिरफ्तार

झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले में रेलवे पुलिस ने तीन नाबालिग बच्चों के साथ संदेहास्पद तरीके से ट्रेन में सफर कर रहे एक फ्रांसिसी नागरिक को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया है। पुलिस ने बुधवार को बताया कि शालीमार से कुर्ला जा रही कुर्ला एक्सप्रेस ट्रेन के प्रथम श्रेणी के वातानुकूलित कोच से फ्रांसिसी नागरिक गोएट का पकड़ा गया। उसके साथ पश्चिम बंगाल के तीन नाबालिग बच्चे भी सफर कर रहे...

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नजर, निर्लज्ज नजारा और अनदेखी : एम.जे. अकबर

गरीबी की तुलना में समृद्धि की पहचान बेहद आसान है। दौलत या तो नजर आती है या उसका निर्लज्ज नजारा होता है, जबकि निर्धनता अनदेखी ही बनी रहती है। सबसे बदतर किस्म की गरीबी देश और दुनिया के उन हिस्सों में अदृश्य रहती है, जहां यह सरकार के उद्गम स्थल से बाहर होती है और व्यावसायिक प्रतिष्ठान, नौकरशाही या मीडिया सरीखे आधुनिक जीवन के इंजनों को ईंधन देने का काम करने वाले...

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मुश्किल है गरीबों की पहचान? : हर्ष मंदर

यदि आप किसी गांव में जाएं और ग्रामीणों से पूछें कि यहां रहने वाले लोगों में से कौन गरीब हैं, तो उनके लिए इस सवाल का जवाब देना कठिन नहीं होगा। शायद वे किसी दृष्टिहीन विधवा का नाम बताएं, या किसी बुजुर्ग दंपती की ओर इशारा करें, जो भीख मांगकर पेट भरते हैं, या कर्ज के बोझ तले दबे किन्हीं किसानों का उल्लेख करें। वे गरीबों की अपनी सूची में पिछड़ी जाति के...

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‘शिक्षा’ की ‘व्यवस्था’ से अनबन भला क्यों?- मदन कलाल

भास्कर ब्लॉग. . मैं इन दिनों शिक्षा और व्यवस्था के फेर में बुरी तरह उलझा हुआ हूं। समझ नहीं आता शिक्षा की मेरी सोच गलत है या शिक्षा व्यवस्था की उनकी यानी स्कूलों की सोच। मेरे हिसाब से शिक्षा और व्यवस्था दो भिन्न और यहां तक कि विपरीत चीजें हैं। शिक्षा यानी हर दिन, हर पल, हर गुजरते क्षण से कुछ नया सीखना और व्यवस्था यानी बनी-बनाई लीक, र्ढे पर चलना।...

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