कृषि क्षेत्र के लिए टर्म्स ऑफ ट्रेड यानी उसके उत्पादों की मिलने वाली कीमत और उसके द्वारा खऱीदे जाने वाली वस्तुओं और उपयोग की जाने वाली सेवाओं के लिए चुकायी जाने वाली कीमत के अनुपात के मामले में एनडीए सरकारों का दौर किसानों के लिए फायदेमंद नहीं रहा है। इसे केवल संयोग कहा जाए या नीतियों के मोर्चे पर किसानों के हितों की अनदेखी। लेकिन सचाई यह है कि पिछली...
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अगले साल चीन के बराबर पहुंच जाएगी भारत की विकास दर : विश्व बैंक
वॉशिंगटन। विश्व बैंक ने कहा है कि अगले साल सात प्रतिशत की विकास दर हासिल कर भारत इस मामले में चीन की बराबरी कर लेगा। विश्व बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री एवं वरिष्ठ उपाध्यक्ष कौशिक बसु ने विश्व आर्थिक परिदृश्य के बारे में कल यहां रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि एक ओर जहां चीन की विकास दर में अगले दो साल में कमी आएगी वहीं भारत की विकास दर में...
More »घर छोड़ने को मजबूर क्यों अन्नदाता? - देविंदर शर्मा
कृषि के संदर्भ में राष्ट्रीय नमूना सर्वे संगठन (एनएसएसओ) की हालिया रिपोर्ट साफ तौर पर बताती है कि कृषि न केवल संकट के दौर से गुजर रही है, बल्कि उसका तेजी से क्षरण भी हो रहा है। मैं चकित नहीं हूं। आखिरकार 1996 में ही विश्व बैंक ने भारतीय कृषि के पतन की दिशा बता दी थी। तब विश्व बैंक ने अनुमान लगाया था कि अगले बीस वर्षों में भारत...
More »शिक्षा के क्षेत्र में डराते संकेत - संजीव कुमार
अधिक समय नहीं हुआ, भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी का बयान आया था कि रोमिला थापर और बिपन चंद्र जैसे नेहरूवादी इतिहासकारों की किताबों को जला देना चाहिए। इस बयान की बड़ी चर्चा और निंदा हुई थी। पर थोड़ा ठहर कर सोचें कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के पास ऐसी किताबों को जला देने, लुगदी बनवा देने, या बलप्रयोग करके इनकी बिक्री रुकवा देने के अलावा उपाय क्या है? क्या...
More »बराबरी का फलसफा और हम - गोपालकृष्ण गांधी
साम्यवाद का भविष्य। यह भी आज किसी लेख का विष्ाय हो सकता है क्या? कांग्रेस का भविष्य, नेहरू-गांधी परिवार का भविष्य, लोकतांत्रिकता का भविष्य, अल्पसांख्यिकता का भ्ाविष्य, स्वतंत्र विचार, स्वतंत्र लेखन, स्वतंत्र चिंतन का भविष्य, इन सब पर सोच वाजिब और लाजिम है। लेकिन साम्यवाद..? साम्यवाद करके जब कुछ रहा ही नहीं है, उस नाम के दोनों दलों माकपा और भाकपा के जब लोकसभा में सदस्य ही नहीं के बराबर हैं,...
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