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जुदा होना खुदा का, नुक्ते से- योगेंद्र यादव

लिखा तो था ‘खुदा’ मगर नुक्ते के फेर से बन गया ‘जुदा’. आशीष नंदी का ‘विवादास्पद बयान’ वाला मुद्दा कुल मिला कर उर्दू की इस कहावत जैसी बात थी, जिसका बतंगड़ बन गया है. जिंदगी भर समाज के हाशियाग्रस्त समूहों की हिमायत करनेवाले आशीष नंदी दलित, आदिवासी और पिछड़े समुदाय के पक्ष में एक बारीक तर्क गढ़ रहे थे. बात रखते-रखते एक वाक्य में जुबान फिसल गयी. और बस, सारा मीडिया उस...

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जहां विचारों की कमी है- अपूर्वानंद

जनसत्ता 30 जनवरी, 2013: जयपुर साहित्य समारोह में आशीष नंदी के वक्तव्य के कारण उनके खिलाफ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति उत्पीड़न संबंधी कानून के अंतर्गत मुकदमा दर्ज किया गया है। बल्कि कहना ठीक होगा, मुकदमे दर्ज किए गए हैं, राजस्थान और उसके बाहर भी। अनुसूचित जाति और जनजाति आयोग ने उनकी अब तक गिरफ्तारी न किए जाने पर नाराजगी जाहिर की है। वाम, दक्षिण, मध्यमार्गी, हर प्रकार के राजनीतिक दल ने...

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इन्कूलिसिव मीडिया फैलोशिप 2013 के परिणाम घोषित

हिन्दी और अंग्रेजी भाषा के आठ पत्रकारों का चयन विकासशील समाज अध्ययन पीठ(सीएसडीएस) द्वारा दी जाने वाली इन्कूलिसिव मीडिया फैलोशिप के लिए हुआ है। चयनित पत्रकार देश के छह राज्यों से हैं। खोजी और सार्थक पत्रकारिता की श्रेष्ठ परंपरा का निर्वाह करते हुए चयनित फैलो ग्रामीण समुदाय की चिन्ताओं और समस्याओं को जन-सामान्य के बीच लाने और उस दिशा में नीतिगत हस्तक्षेप की जमीन तैयार करने के लिए, उनके बीच कुछ समय बितायेंगे। फैलोशिप के अभ्यर्थियों का...

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बदनाम बैतूल- शिरीष खरे

मध्य प्रदेश का बैतूल जिला बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के मामले में देश भर में शीर्ष पर है. कोई इसकी वजह गरीबी से जोड़ता है, कोई सरकारी संवेदनहीनता से, कोई नई-नई आई जागरूकता से और कोई तो लालच से भी. शिरीष खरे की रिपोर्ट. महिलाओं की सुरक्षा के मामले में देश की राजधानी दिल्ली हमेशा ही चर्चा के केंद्र में रही है. लेकिन दिल्ली से ठीक एक हजार किलोमीटर दूर एक जगह...

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जनाक्रोश का अश्वमेधी घोड़ा- योगेंद्र यादव

जनसत्ता 7 जनवरी, 2012: जंतर मंतर से दूर दो छवियां मेरे मन में अटक गई हैं। पहली छवि मेरी कॉलोनी की लड़कियों और महिलाओं के छोटे-से प्रदर्शन की है। किसी के हाथ में मोमबत्ती है, किसी के हाथ में तख्ती। पल भर को हैरत हुई, क्योंकि इन महिलाओं को मैंने अब तक सात-सबेरे बच्चों को स्कूल-बस में चढ़ाते, जाड़े की धूप में स्वेटर बुनते या फिर दोपहर बाद के किसी भी...

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