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विकास बनाम जातिवाद का द्वंद्व - विजय संघवी

गुजरात में चुनावी रस्साकशी चरम पर है। इस राज्य में अगर कांग्रेस की रणनीति पर गौर करें तो लगता है कि उसने सत्ता में वापसी की अपनी तमाम उम्मीदें जातिगत समीकरणों पर टिका दी हैं। गौरतलब है कि उसने तकरीबन चार दशक पूर्व 1980 में भी इस राज्य में जातिगत समीकरणों को साधते हुए पूर्ण बहुमत हासिल किया था। लेकिन कांग्रेस यह भूल रही है कि तब से अब तक...

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देश में गैरबराबरी और भूख -- डॉ अनुज लुगुन

कुछ ही दिन पहले झारखंड के सिमडेगा जिले में संतोषी नाम की बच्ची की भूख से हुई मृत्यु कई बड़े-बड़े राजनीतिक दावों को झुठलाती है. हालांकि, मलेरिया और भूख के कारणों के बीच ही पूरा मुद्दा केंद्रित हो गया. लेकिन, यह बदलते समय में बुनियादी जरूरतों की पहुंच व उपलब्धता पर एक बड़ा सवाल है. सिमडेगा झारखंड के दक्षिणी हिस्से में उड़ीसा और छत्तीसगढ़ की सीमा पर जंगलों से...

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भूख नहीं जानती सब्र-- संजीव पांडेय

दुष्यंत कुमार का शेर है : भूख है तो सब्र कर, रोटी नहीं तो क्या हुआ। आजकल संसद में है जेरे-बहस ये मुद्दआ। शायर इसमें हुक्मरानों की खिल्ली उड़ा रहा है क्योंकि वह जानता है कि भूख सब्र नहीं जानती। इसके बावजूद हमारी व्यवस्था गरीबों का इम्तहान लेती रहती है। महज कुछ दिनों के अंतर पर ही झारखंड में भूख से तीन मौतें हुर्इं; उस राज्य में जो खनिज संसाधनों...

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एक साथ चुनाव कराने का अर्थ-- योगेन्द्र यादव

कुछ साल पहले अमर्त्य सेन ने हमें आर्गुमेंटेटिव इंडियन की उपाधि दी थी. वो हमारी तर्क-वितर्क और दर्शन की परंपरा का सम्मान कर रहे थे. मैं अक्सर सोचता हूँ कि 'आर्गुमेंटेटिव इंडियन' का अनुवाद क्या होगा? तर्कशील भारतीय? तर्की-वितर्की-कुतर्की भारतीय? या फिर बहसबाज भारतीय? मुझे बहसबाज ज्यादा लगता है. क्योंकि हम हिंदुस्तानियों की प्रवृत्ति है कि जिन मुद्दों पर बहस होनी चाहिए उन पर तो करते नहीं हैं, लेकिन...

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भुखमरी से निपटने की चुनौती-- निरंकार सिंह

दुनिया की 7.1 अरब आबादी में अस्सी करोड़ यानी बारह फीसद लोग भुखमरी के शिकार हैं। बीस करोड़ भुखमरी के शिकार लोगों की संख्या के साथ भारत इसमें पहले नंबर पर है। यह हाल तब है जब दुनिया में भरपूर अनाज और अन्य खाद्य पदार्थों की पैदावार हो रही है। दुनिया भर में कहीं गृहयुद्ध तो कहीं प्राकृतिक आपदाओं के चलते लोग अपने घरों, अपने देश से दर-बदर हो रहे...

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