बीते कुछ वर्षों में जम्मू-कश्मीर ने धार्मिक कट्टरता और हिंसक उग्रवाद में काफी वृद्धि देखी है। आतंकी जमातों की स्थानीय भर्ती में तेजी आई है। खासतौर से कश्मीर घाटी में नौजवान आज सैन्य अभियानों को बाधित करने और राज्य-प्रशासन को चुनौती देने के लिए पहले से कहीं ज्यादा सक्रिय दिखाई देते हैं। थोड़े ही दिन हुए, जब पथराव करने वाली उन्मादी भीड़ ने मुठभेड़ स्थल से आतंकियों को भागने का...
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क्या कहती है सबरीमाला की राजनीति- एस, श्रीनिवासन
आखिरकार नए साल में 10 से 50 साल की उम्र की महिलाओं ने सबरीमाला में प्रवेश करके अपने भगवान अयप्पा की पूजा-अर्चना करने में कामयाबी हासिल कर ली। उन्हें यह सफलता सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तीन महीने बाद मिल पाई है। ऐसा लगता है कि केरल की वाम मोर्चा सरकार औरतों को इस मंदिर में प्रवेश दिलाने के लिए माकूल वक्त का इंतजार कर रही थी। जिन दो महिलाओं...
More »नस्लवाद और गांधी का नजरिया- रामचंद्र गुहा
क्या मोहनदास करमचंद गांधी नस्लवादी थे? यह सवाल घाना में गांधी की प्रतिमा हटाने के कारण एक बार फिर से सुर्खियों में है। जिस याचिका के बाद मूर्ति हटाई गई, उसमें गांधी के कई बयानों का जिक्र किया गया था। हालांकि गांधी के ये बयान खासतौर से दक्षिण अफ्रीका में उनके शुरुआती दिनों के हैं। एक वयस्क परिपक्व गांधी अफ्रीका और अफ्रीकियों के संदर्भ में, नस्ल और नस्लवाद के बारे...
More »क्या किसान-आंदोलन अब देश की राजनीति का मुख्य कथानक बन चला है?- योगेन्द्र यादव
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) के झंडे तले देश के कोने-कोने से हज़ारों हज़ार की तादाद में किसान दिल्ली आ डटे थे. एआईकेएससीसी 200 से ज़्यादा किसान-संगठनों का एक समवेत मंच है. ये पहला मौका था जब मीडिया ने सड़क-जाम या फिर कानून-व्यवस्था का मसला कहकर कन्नी नहीं काटी बल्कि किसान-रैली को सही में किसान-रैली कहकर ही लोगों को बताया-दिखाया. दोपहर बाद का सत्र राजनीतिक दलों के लिए...
More »किसानों के प्रति उदासीनता- योगेन्द्र यादव
बीसवीं सदी के किसान नेता दीनबंधु चौधरी छोटू राम ने किसान को कहा था: 'ए भोले किसान, मेरी दो बात मान लें- एक बोलना सीख और एक दुश्मन को पहचान ले'. लगता है सौ साल बाद भारत के किसान ने उनकी बात सुन ली है. आज देशभर से 200 से अधिक किसान संगठन 'किसान मुक्ति मार्च' लेकर दिल्ली पहुंच रहे हैं. इस मार्च के जरिये किसान बोलना सीख रहे हैं....
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