जनसत्ता 5 जनवरी, 2012: पूरी दुनिया में एक सौ पचीस करोड़ से अधिक लोग भूख से त्रस्त हैं, जिनमें से एक तिहाई लोग भारत के गरीब हैं। नवीनतम वैश्विक भूख सूचकांक में भारत का स्थान बहुत नीचे, इक्यासी देशों के बीच सड़सठवां है। इसलिए यह स्वागत-योग्य है कि भारत सरकार ने खाद्य सुरक्षा की गारंटी देने वाला विधेयक संसद में पेश किया है। इस विधेयक में ग्रामीण इलाकों की पचहत्तर फीसद और...
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डिजिटल क्रांति के खतरे : केविन रैफर्टी
कल्पना करें कि बड़े पैमाने पर सर्वर डाउन या पॉवर फेल की स्थिति में क्या होगा? या अगर विध्वंसक इरादों वाले किन्हीं उन्मादियों ने डिजिटल तंत्र पर कब्जा कर लिया तो क्या परिणाम होंगे? डिजिटल क्रांति के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि इसके कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था का केंद्र उत्पादन के स्थान पर वितरण की ओर खिसक रहा है। पहले एक अच्छी खबर : डिजिटल क्रांति अभी शुरू ही...
More »विकास का पैमाना क्या है- अनिल चमड़िया
जनसत्ता 3 जनवरी, 2012: विदेशी निवेश भूमंडलीकरण की नीति का हिस्सा है। इसीलिए खुदरा व्यापार को विदेशी पूंजी के हाथों में देने के केंद्र सरकार के फैसले का स्थगन परमाणु समझौते की तरह ही है। अमेरिका के साथ भारत के परमाणु समझौते की पूरी प्रक्रिया पर नजर दौड़ाएं तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने संसद में कह दिया था कि सरकार के पास यही एकमात्र एजेंडा नहीं है। यूपीए-एक सरकार का...
More »पांच वर्षो में दोगुनी होगी पैदावार
पटना : पांच वर्षो में बिहार में खरीफ और रबी फसलों का उत्पादन दोगुना होगा. साथ ही राष्ट्रीय औसत से अनाज उत्पादन अधिक करने का लक्ष्य रखा गया है. धान, गेहूं, दलहन, तिलहन और मक्का सहित सभी प्रकार के अनाज और सब्जी उत्पादन में न सिर्फ आत्मनिर्भरता हासिल होगी, बल्कि निर्यात भी किया जा सकेगा. शुरू होंगी नयी योजनाएं उत्पादकता बढ़ाने के लिए राज्य में कई योजनाएं चलायी जा रही हैं. कृषि...
More »कृषि उत्पादन नहीं, मूल्य बढ़ायें- भरत झुनझुनवाला
अर्थव्यवस्था में तीव्र विकास के बावजूद कृषि और किसानों की स्थिति में सुधार नहीं हो रहा है. पिछले साठ वर्षो में प्रत्येक सरकार ने कृषि में सुधार का संकल्प लिया है, किंतु स्थिति बिगड़ती गयी है, जैसा कि आत्महत्या की बढ़ती संख्या से अनुमान लगता है. मूल कारण यह है कि सरकार का ध्यान कृषि उत्पादन में वृद्धि की ओर ज्यादा रहा है, मूल्यों में वृद्धि की ओर कम. मान्यता है कि...
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