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असंभव की सीमाएं तोड़ीं और आज बन गईं रोल माडल-- माधव शर्मा

जयपुर. गांव-देहात से निकली ये महिलाएं आज सामाजिक-आर्थिक बदलाव की कहानियां गढ़ रही हैं। मेहनत और हौसले से इन्होंने न केवल सामाजिक बंधन और रूढ़ियों को ध्वस्त किया बल्कि अपनी आर्थिक तरक्की की राह भी प्रशस्त की। आइये, आपको बदलाव के कुछ ऐसे किरदारों से मिलाते हैं जिन्होंने खुद की ही नहीं बल्कि अपने आस-पास की भी तस्वीर बदल दी। 100-200 रुपए से हुई शुरुआत आज 4-5 लाख रुपए तक...

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सबके लिए पैसा है, पर किसानों के लिए नहीं - देविंदर शर्मा

मानसून खत्म हो चुका है। 14 प्रतिशत कम बारिश हुई है और देश में फसल वाले ऐसे करीब 39 फीसद इलाके हैं, जहां बिलकुल सूखा है। उम्मीद थी कि रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन किसानों के लिए वित्तीय लाभों और ऋण भुगतानों में छूट की श्रंखला की घोषणा करेंगे। इसकी जगह रघुराम राजन ने पिछले हफ्ते व्यावसायिक बैंकों के उधार देने की ब्याज दरों में काफी कटौती करने वाली...

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पेमेंट बैंकों से ग्रामीण इलाकों में बैंकिंग का विस्तार होगाः वर्ल्ड बैंक

वाशिंगटन (एजेंसी)। देश में 11 नए भुगतान बैंकों के चालू होने से ग्रामीण इलाकों में बैंकिंग सेवाओं का विस्तार होने की उम्मीद है।   वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक आरबीआई के इस निर्णय से ग्रामीण इलाकों में रेमिटेंस (बाहर से पैसे भेजना) की बेहतर सुविधा मुहैया कराने में मदद मिल सकती है। पमेंट बैंक उन बाजारों के छोटे बचतकर्ताओं (मुख्यतः ग्रामीण इलाके) के लिए होंगे जहां बैंकिंग सेवाओं की बहुत कमी...

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गांवों में शहरों से ज्यादा महंगाईः एचएसबीसी

नई दिल्ली। यह जानकर हैरानी होगी कि शहरी इलाकों के मुकाबले ग्रामीण इलाकों में महंगाई ज्यादा है। खुदरा कीमतों के हिसाब से ग्रामीण इलाकों में महंगाई दर 6.5 फीसदी है, जबकि शहरी इलाकों में केवल 4.5 फीसदी। देश में फिलहाल औसत महंगाई दर 5.5 फीसदी है, जो रिजर्व बैंक के 6 फीसदी लक्ष्य से कम है। लेकिन, ग्रामीण इलाकों में महंगाई रिजर्व बैंक के लक्ष्य से ऊपर पहुंच गई है। ग्लोबल...

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आंकड़े क्यों घटते दिख रहे हैं-- सुभाष गताड़े

दिलचस्प है कि इस बार अर्थशास्त्र का नोबल पुरस्कार एक ऐसे शख्स को मिला है, जिसने भारत में गरीबी नापने के प्रचलित तरीकों पर भी सवाल उठाकर इसे सुधारने में अहम भूमिका अदा की है। प्रचलित तरीकों से लोगों द्वारा किए जा रहे उपभोग का सही अनुमान नहीं लग पाता था और वास्तविक गरीबी का चित्र नहीं उभर पाता था। अर्थव्यवस्था में राज्य हस्तक्षेप के समर्थक इस वर्ष के नोबल विजेता...

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