वसंत के मौसम में परीक्षा में नकल की बातें अक्सर सामने आती हैं. जैसे ही परीक्षा का मौसम का खत्म होता है, सबकुछ सामान्य हो जाता है. अब जिस व्यवस्था में पढ़ाई का एक मात्र लक्ष्य परीक्षा पास करना हो, और हमने उसी तरह की परीक्षा प्रणाली भी विकसित की हो जिसमें ज्ञान अजिर्त करना छात्रों का उद्देश्य न हो, बल्कि परीक्षा में अधिक अंक लाना ही एकमात्र उद्देश्य हो,...
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अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्ष में- रविभूषण
मुक्तिबोध और फैज जैसे कवियों ने जब ‘अभिव्यक्ति के खतरे उठाने' और ‘बोल कि लब आजाद हैं तेरे' का आह्वान किया था, वे राज्यसत्ता के चरित्र और उसके द्वारा समय-समय पर लगायी गयी पाबंदियों से भली भांति परिचित थे. मुक्तिबोध ने तो नहीं, पर फैज ने राज्यसत्ता के दमन को ङोला भी था. अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश लगाने का काम सर्वसत्तात्मक और एकदलीय शासन प्रणाली मनमाने ढंग से करती...
More »जमीन किसान की या राज्य की- शंभुनाथ शुक्ल
आज भूमि अधिग्रहण विधेयक का विरोध हो रहा है। पर अगर आजादी के तत्काल बाद सरकार किसान और उसकी जमीन के संदर्भ में अंग्रेजों के पूर्व की स्थिति बहाल कर देती, तो यह स्थिति पैदा नहीं होती। यानी आजादी के बाद की कांग्रेसी सरकारें भी विकास के लिए वही नीति अपनाना चाहती थी, जो अंग्रेजों की थी। अंग्रेजों से पहले राजाओं, सुल्तानों व मुगलों के समय तक किसान ही जमीन...
More »शक्ल ही भद्दी हो तो आईना क्या करे? - शरद यादव
नैतिकता, स्त्री-पुरुष संबंधों और स्त्री से जुड़े तमाम सवालों को लेकर हमारे सामाजिक और राजनीतिक जीवन में खासकर खाए-अघाए तबके में पाखंड इस कदर हावी है कि वह अपनी तमाम कुंठाओं को तरह-तरह से छुपाता है और सच का या कड़वे सवालों का सामना करने से कतराता और घबराता है। इसलिए 'नईदुनिया" के 18 मार्च के अंक में श्री अमूल्य गांगुली ने मेरी आलोचना करते हुए जो लेख लिखा, उससे...
More »किसानों को दिहाड़ी मजदूर न बनाएं - देविंदर शर्मा
22 मार्च को किसानों के संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'मन की बात" रेडियो पर प्रसारित होगी और देश में खेती-किसानी और कृषकों के हालात सुधारने के बारे में उनके विचारों से मैं अवगत होना चाहूंगा। मैं नहीं जानता कि मेरे विचार उनके किसी निर्णय को बदल अथवा प्रभावित कर सकते हैं या नहीं, लेकिन यहां मैं किसानों की दुर्दशा और परेशानी अवश्य साझा कर सकता हूं। इसके साथ...
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