इस देश में जच्चा-बच्चा कैसे सुरक्षित रह सकते हैं, जब स्वास्थ्य केंद्रों से लेकर अस्पताल तक लोगों को समय से उपचार नहीं मिल रहा। संस्थागत प्रसव के बाद एक भी बच्चे की मौत तक व्यवस्था पर सवाल जिंदा बना रहेगा। रोजाना जन्मने वाले कुल शिशुओं मे 50 फीसदी की हिस्सेदारी अकेले आठ ईएजी राज्य करते हैं। यहां स्थितियां बेहद जर्जर हैं। वहीं अन्य राज्यों में भी स्थिति को संतोषजनक नहीं...
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इन नीतियों से कृषि नहीं उबरेगी
“नीतियों का फोकस बदलें और प्रतिबंधों से मुक्त कर किसान को अपनी बुद्धिमानी से चयन करने दें” कृषि क्षेत्र की नीतियां बनाने में खाद्य सुरक्षा पर फोकस रहा है। यह वाजिब भी है क्योंकि देश में खाद्य वस्तुओं की कमी और आयात पर निर्भरता से निपटने के लिए हरित क्रांति इसी वजह से शुरू की गई। वाजिब कीमत पर खाद्य पदार्थों की उपलब्धता हमारी नीतियों के केंद्र में रही और बाद...
More »हिंदू राष्ट्रवाद को चुनौती देना चाहते हैं ये दलित ब्रैंड्स
दक्षिण मुंबई में एक महंगे रीटेल स्टोर में जिस समय शहर के संपन्न लोग दलित उद्धार और 'बहिष्कृत लोगों' व फ़ैशन की दुनिया के मेल पर बात कर रहे थे, 32 साल के सचिन भीमा सखारे बाहर एक कोने में खड़े थे. ये सब हो रहा था बीते पाँच दिसंबर को. सचिन भीमा सखारे बताते हैं कि स्टोर में हुए इवेंट में 'चमार फ़ाउंडेशन' के सदस्यों द्वारा बनाए गए रबर के...
More »NRC को पूंजीवादी दृष्टि से भी देखा जाना चाहिए
एनआरसी को अभी तक सिर्फ़ कम्युनल और संवैधानिक दृष्टि से ही देखा गया है। एनआरसी पूंजीवादी के कितना काम आ सकता है, किस तरह काम आ सकता है इस पर भी एक नज़र डाल लेना चाहिए। क्योकि पूंजीवादी जब फासीवाद को अपना हथियार बना लेता है तो दमन और क्रूरता के सारे पुराने मापदंड टूट जाते हैं।इसे समझना हो तोलोकल इंटेलिंजेंस यूनिट के हवाले से लिखी गई अमर उजाला की...
More »नए साल पर जलते-बंटते मुल्क में मीडिया-रुदन
पिछले ही हफ्ते ओलिंपिक खेलों में प्रवेश के लिए मुक्केबाज़ी का ट्रायल हुआ था. मशहूर मुक्केबाज़ मेरी कॉम ने निख़त ज़रीन नाम की युवा मुक्केबाज़ को हरा दिया. इस घटना से पहले और बाद में क्या-क्या हुआ, वह दूर की बात है. मुक्केबाज़ी के इस मैच और उसके नतीजे की ख़बर ही अपने आप में जिस रूप में सामने आयी, वह मुझे काम की लगी. किसी ने ट्विटर पर किसी...
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