SEARCH RESULT

Total Matching Records found : 187

परिचर्चा: विकास की अवधारणा

निमंत्रण                      परिचर्चा: विकास की अवधारणा                                 डॉ. शिवराज सिंह (योजना मंडल) और प्रो. हनुमंत यादव,                                                 चर्चा में- बी.के.मनीष के साथ.   छत्तीसगढ़ इलेक्शन वॉच की ’विधानसभा चुनाव जागरूकता कार्यक्रम श्रृंखला” की पहली कड़ी.                       सायं ४ बजे, मंगलवार, २२ अक्टूबर, प्रेस क्लब, रायपुर. धार्मिक ध्रुवीकरण तथा सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों को पार कर के अब चुनाव विकास के मुद्दे पर लड़े जा रहे हैं। जहां राज्य और केंद्र की वर्तमान सरकारें चहुंमुखी विकास विकास के दावे करते नहीं थक रही हैं वहीं...

More »

‘हिंसा-अहिंसा की बहस अब बेमानी हो गई है’

अपनी नई डॉक्युमेंटरी फिल्म में फिल्मकार संजय काक भारत के भीतरी राज्यों छत्तीसगढ़, उड़ीसा और पंजाब के सफर पर ले चलते हैं, जहां क्रांति का सपना पल रहा है. अंग्रेजी में ‘रेड ऐंट ड्रीम’ और हिंदी में ‘माटी के लाल’ नाम से बनी यह फिल्म उन संघर्षों को पेश करती है जिनसे भारत में क्रांति की संभावनाएं जुड़ी हुई हैं. इसमें बस्तर में भारतीय राज्य के विरुद्ध संघर्षरत हथियारबंद आदिवासी,...

More »

तू क्यों पिछड़ी लाडो!- प्रियंका कौशल

छत्तीसगढ़ के सुदूर अंचलों में आज भी महिलाओं को पुरुषों से ऊंचा दर्जा दिया जाता है और इसकी शुरुआत होती है परिवार में बेटियों को तवज्जो देने से. लेकिन राज्य की राजनीति में यह तस्वीर बिल्कुल उल्टी है. प्रियंका कौशल की रिपोर्ट. राजनीति में परिवारवाद ऐसी बुराई हो चली है जिसके खिलाफ कोई मुहिम नहीं छेड़ी जा सकती. अब यदि ऐसा है तो क्या इसमें कुछ सकारात्मक पक्ष खोजा जा सकता...

More »

पत्रकारिता का लाइसेंस क्यों?- उर्मिलेश

जनसत्ता 22 अगस्त, 2013 :  भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष जस्टिस मार्कंडेय काटजू काफी दिनों से पत्रकारिता की तुलना वकालत और डॉक्टरी आदि जैसे पेशों से करते आ रहे हैं।उनका तर्क है कि अन्य सभी पेशों के लिए कुछ न कुछ योग्यता तय है। पर पत्रकार कोई भी बन जाता है!  पांच-छह महीने पहले उनके इस आशय के बयानों पर काफी विवाद हुआ तो विस्तृत रिपोर्ट और सुझाव देने के लिए उन्होंने...

More »

लोहा नहीं अनाज चाहिए- विनोद कुमार

जनसत्ता 20 अगस्त, 2013 :  झारखंड बनने के बाद प्रभु वर्ग ने इस बात को काफी जोर-शोर से प्रचारित-प्रसारित किया है कि झारखंड का विकास और झारखंडी जनता का कल्याण उद्योगों से ही हो सकता है और खनिज संपदा से भरपूर झारखंड में इसकी अपार संभावनाएं हैं। यह प्रचार कुछ इस अंदाज में किया जाता है मानो झारखंड में पहली बार औद्योगीकरण होने जा रहा है। हकीकत यह है कि...

More »

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close