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दवाओं का क्लिनिकल ट्रायल अब आसान नहीं

बगैर परीक्षण वाली दवाओं का क्लिनिकल ट्रायल तभी हो सकेगा जब उसकी मॉनीटरिंग की समुचित व्यवस्था हो जाएगी जिन लोगों पर नई दवाओं का परीक्षण होता है, उनकी जिंदगी खतरे में न पड़े, उसका भी इंतजाम करना होगा पूर्व मंजूरी खारिज 162 दवाओं के क्लिनिकल ट्रायल के लिए केंद्र से मिली मंजूरी पर सुप्रीम कोर्ट ने लगा दी है रोक सरकार ने माना 2005 से 2012 के बीच 475 नई दवाओं के क्लिनिकल ट्रायल के...

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शिक्षा केंद्र, बुद्धिजीवी और सत्ता- आनंद कुमार

जनसत्ता 25 सितंबर, 2013 : किसी भी लोकतांत्रिक समाज में सरकार और शिक्षा केंद्रों के बीच का संबंध हमेशा एक सृजनशील तनाव से निर्मित होता है। सरकार की तरफ से शायद ही कभी ऐसा प्रयास हो, जिसमें शिक्षा केंद्रों को अधिकतम स्वायत्तता मिलती है, क्योंकि सरकार शिक्षा केंद्रों में चल रहे ज्ञान-मंथन, तथ्य-विश्लेषण और विद्वानों की स्वतंत्र शोध-क्षमता से सशंकित रहती है। सरकार का काम हमेशा कुछ आधा और कुछ पूरा-...

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महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना हमारा लक्ष्य : अनिता केरकेट्टा

मैं एक किसान परिवार से हूं और मेरे माता-पिता दोनों ही पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन वे साक्षर थे और उनकी सोच प्रगतिशील थी, यही कारण है कि उन्होंने मुङो पढ़ाया-लिखाया और इस काबिल बनाया कि मैं दूसरों को अधिकार दिलाने के लिए उनकी जंग लड़ सकूं और उन्हें सहारा दे सकूं. यह कहना है महिला सामाख्या की जिला कार्यक्रम समन्वयक अनिता केरकेट्टा का. रजनीश आनंद अनिता पूरी निष्ठा के साथ महिला सामाख्या के कार्यक्रमों...

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फेरीवालों को सम्मान का हक है- सुधांशु रंजन

दैनिक जरूरतों की वस्तुएं घर के निकट उपलब्ध करानेवाले मेहनतकशों का हर दिन असुरक्षा और अपमान के बीच बीतता है. उनके दु:ख-दर्द को देखते हुए उनके हकों को कानूनी जामा पहनाने का एक क्रांतिकारी कदम उठाया गया है. भारत में 90 फीसदी से अधिक लोग असंगठित क्षेत्रों में काम करते हैं. उनकी कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं होती. इनमें एक बड़ा वर्ग फेरीवालों का है, जो सड़कों के किनारे और गलियों में...

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न्याय का नखलिस्तान- रुचिरा गुप्ता

जनसत्ता 18 सितंबर, 2013 : भारत में अगर किसी का पुलिस या न्यायपालिका से कभी पाला पड़ा हो, तो वह अच्छी तरह से जानता होगा कि यह अनुभव कितना क्षोभ और आक्रोश से भर देने वाला होता है। भारतीय न्यायपालिका और पुलिस तंत्र में कई तरह की खामियां हैं। उनमें से कुछ को रेखांकित किया जा सकता है। मसलन, पुलिस अधिकारियों के बीच जवाबदेही का अभाव, खासतौर से महिलाओं और दलितों...

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