रवींद्र कैलासिया, भोपाल। पुलिस थाने में कम्प्यूटर के सामने बैठकर अपनी फरियाद लिखवाने के लिए कुछ दिनों बाद पुलिसकर्मी की टाइपिंग स्पीड से पीड़ित को जूझना नहीं पड़ेगा। इसके लिए पुलिस गूगल और माइक्रोसॉफ्ट की तरह अपना खुद का 'स्पीच टू टेक्स्ट' ऐप डेवलप कर रही है। थाने में बैठा पुलिसकर्मी कम्प्यूटर के सामने पीड़ित की फरियाद बोलते जाएंगे और कुछ मिनट में ही उसका प्रिंट भी मिल जाएगा। भारतीय पुलिस...
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गांधी के पास देने को बहुत कुछ- आशुतोष चतुर्वेदी
अनेक विद्वानों का मानना है कि महात्मा गांधी को समझना आसान भी है और मुश्किल भी. दरअसल, गांधी की बातें सरल और सहज लगती हैं, लेकिन उनका अनुसरण करना बेहद कठिन होता है. हम सभी जानते हैं कि महात्मा गांधी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख नेता थे. वह एक सफल लेखक भी थे. आप उनकी सक्रियता का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि 2 अक्तूबर, 1869 में...
More »मप्र में 40 करोड़ पौधे लगाने के बाद भी घट गई हरियाली
मनोज तिवारी, भोपाल। प्रदेश में हर साल 8 करोड़ से ज्यादा पौधे लगाए जा रहे हैं, फिर भी हरियाली बढ़ने की बजाय घट रही है। भारतीय वन सर्वेक्षण संस्थान की सर्वे रिपोर्ट से पता चलता है कि वर्ष 2013 और 2015 के बीच प्रदेश में 60 वर्ग किमी हरियाली घटी है। जबकि पौधरोपण पर हर साल औसतन 60 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं। इस हिसाब से पांच साल में...
More »औपनिवेशिक दंश झेलती जनजातियां-- प्रमोद मीणा
वर्ष 1871 में औपनिवेशिक भारत में ब्रिटिश सरकार ने भारत की कुछ खानाबदोश और अर्द्ध खानाबदोश जनजातियों को आपराधिक जनजाति अधिनियम (क्रिमिनल ट्राइबल एक्ट) पारित करके जन्मजात अपराधी घोषित कर दिया। मुख्यधारा के समाजों से दूर रहने वाली इन जनजातियों को पुश्तैनी रूप से अपराधी मानते हुए उन्हें गैर-जमानती अपराध के दायरे में ला दिया गया। इन जनजातीय समुदायों में थे बावरिया, पारधी, कंजर, सांसी, बंजारा, गरासिया, सहरिया आदि। ये...
More »उपभोक्ता, प्रतिस्पर्द्धा और अर्थशास्त्र-- पी. चिदंबरम
मुझे जुलाई 2008 का वह दिन याद है जब कच्चे तेल की कीमत 147 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई थी। मुझे वह दिन भी याद है जब सऊदी अरब के शाह ने तेल की चढ़ती कीमतों के संकट पर चर्चा करने के लिए तेल उत्पादक देशों और तेल खरीदार देशों की बैठक बुलाई थी। मैंने भारतीय प्रतिनिधिमंडल की अगुआई की थी, जिसमें तब के पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा भी...
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