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यह खुशहाली का रास्ता नहीं है- सीताराम येचुरी

भारतीय उद्योग जगत के एक हिस्से ने तो जोश के सारे रिकॉर्ड ही तोड़ दिए हैं। उद्योग जगत का यह जोश दहशत पैदा करने वाले तरीके से याद दिलाता है कि किस तरह पूंजीपति वर्ग के एक हिस्से ने 1930 के दशक में जर्मनी में हिटलर के उभार में मदद की थी। आज जब साल 2008 की आर्थिक मंदी के बाद से विश्व पूंजीवाद का संकट लगातार बना हुआ है,...

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पार्टी की राजनीति ने गांव की एकता को तोड़ दिया है : राधा भट्ट

गांधी और उनके ग्राम स्वराज के सपने पर नयी दिल्ली स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान की अध्यक्ष और प्रसिद्ध गांधीवादी राधा भट्ट्र से  पंचायतनामा के लिए संतोष कुमार सिंह ने बातचीत की. प्रस्तुत है  प्रमुख अंश : अक्सर इस बात पर चर्चा होती है कि भारत गांवों का देश है,  देश की प्रगति तभी संभव होगी जब गांवों की प्रगति होगी? लेकिन वास्तविकता के धरातल पर इस चर्चा को कितनी जगह मिल पायी...

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घरेलू कामगार: अर्थव्यवस्था का अंधेरा कोना- जैनेन्द्र कुमार

राजधानी दिल्ली में बीते दिनों एक सांसद और उसकी पत्नी पर आरोप लगा कि उन्होंने अपने घरेलू कामगार को मौत के घाट उतार दिया है. यही नहीं, कुछ पिछड़े राज्यों से देश की राजधानी में आकर घरेलू कामकाज करनेवाली महिलाओं पर अत्याचार की कहानियों से तो हम आये दिन दो-चार हो रहे हैं. क्यों होती हैं ऐसी घटनाएं, देश में घरेलू कामगारों के लिए किस तरह का है माहौल, क्या...

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इतनी बदकिस्मत क्यों हैं बेटियां- तवलीन सिंह

भारत की महिलाओं के हाल पर इस बार मैं सिर्फ इसलिए लिख रही हूं, क्योंकि अगले हफ्ते विश्व महिला दिवस है। इसलिए भी लिख रही हूं, क्योंकि मैं शर्मिंदा हूं कि एक महिला पत्रकार होने के बावजूद, मैं महिलाओं के बारे में सिर्फ उस वक्त लिखती हूं, जब किसी निर्भया के साथ इस देश के किसी गांव या शहर में मर्द हैवान की तरह पेश आते हैं। निर्भया के जाने के...

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सुननी होगी दलितों की आवाज- पत्रलेखा चटर्जी

रामविलास पासवान और उदित राज आजकल सुर्खियों में हैं। वजह यह है कि पासवान ने जहां भारतीय जनता पार्टी के साथ गठजोड़ कर लिया है, वहीं उदित राज ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली है। आम चुनाव से ठीक पहले ऐसी घटनाएं लाजिमी हैं। तो आखिर क्या वजह है कि दूसरों के बजाय पासवान और उदित राज ज्यादा चर्चा का विषय बने हुए हैं। दरअसल राजनेताओं की सोच यह है...

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