छत्तीसगढ़ में हजारों एकड़ जमीन खरीदने वाले हरियाणा के किसान आधुनिक तकनीक से खेती के जरिए एक नई मिसाल कायम कर चुके हैं. लेकिन स्थानीय किसान और सरकार इस बदलाव में कुछ खतरनाक संकेत देख रहे हैं. प्रियंका कौशल की रिपोर्ट. सैकड़ों एकड़ में फैले फार्म हाउस और हुक्का पीते किसान. बस खेतों में काम करते आदिवासी न दिखें तो छत्तीसगढ़ के कई क्षेत्रों को देखकर एकबारगी यही लगता है कि...
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भारत का आदिवासी-खाता मतलब घाटा ही घाटा !
सरकारी नौकरियों में आदिवासी समुदाय के लोगों की मौजूदगी नाम-मात्र को है- एशियन सेंटर फॉर ह्यूमन राइटस् द्वारा जारी एक शोध में इस तथ्य की नये सिरे से पुष्टी की गई है। बीते 18 सितंबर को जारी इस शोध के संकेत हैं कि आरक्षण की नीति के बावजूद कुछ मामलों में आदिवासी समुदाय के लोगों का हाशियाकरण लगातार बढ़ रहा है। (पूरी रिपोर्ट के लिए यहां क्लिक करें). बीते मई महीने...
More »शिक्षा के अधिकार का अप्रतिम योद्धा- चंदन श्रीवास्तव
अधिकतर लोग मानते हैं- दुनिया जैसी है, वैसी ही रहेगी. किसी बदलाव की उम्मीद और कोशिश बेकार है. ऐसे लोगों के पास बेहतर जीवन का न तो कोई सपना होता है और न ही आंखों के सामने हो रहे अन्याय को देखने-परखने की क्षमता. ऐसे लोग अपने लिए पहले से तय कोई भूमिका निभा कर संतुष्ट रहते हैं और खुद को सफल मानते हैं. दुनिया में ऐसे लोग ‘सयाने और...
More »मरती भाषाओं के दौर में- शेखर पाठक
जनसत्ता 13 सितंबर, 2013 : कभी रघुवीर सहाय ने कहा था, ‘न सही कविता मेरे हाथ की छटपटाहट सही’। यही बात भाषा के बारे में कही जा सकती है। सिर्फ मनुष्य अपनी छटपटाहट को भाषा यानी शब्द दे सका है। यह कहानी सत्तर हजार साल पहले शुरू होती है, हालांकि लिपियों का संसार करीब पांच हजार साल पहले बनना शुरू हुआ। आज भाषा मानव अस्तित्व की अनिवार्यता और पहचान हो...
More »देश के 20% घरों में अनाज का दाना नहीं : प्रो द्रेज
पटना: अर्थशास्त्री व सामाजिक कार्यकर्ता प्रो ज्यां द्रेज ने कहा कि बिहार भूख व मिस गवर्नेस की राजधानी है. यहां भूख व असुरक्षा की स्थिति सबसे अधिक है. छत्तीसगढ़ व ओड़िशा की स्थिति इतनी बुरी नहीं है. पेंशन योजनाओं के मामले में भी बिहार की हालत दयनीय है. ऐसी स्थिति में खाद्य सुरक्षा अधिनियम से बिहार को बड़ा अवसर मिला है. अनुग्रह नारायण सिंह समाज अध्ययन संस्थान में ‘फूड सिक्युरिटी बिल एंड...
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