-द वायर, ‘भविष्य की खोज’ – यही शीर्षक था उस दार्शनिक व्याख्यान का, जिसे जाने-माने ब्रिटिश लेखक जनाब एचजी वेल्स ने लंदन के रॉयल इंस्टिट्यूशन के सामने दिया था. (1902) आज के वक्त़ भले ही दुनिया उन्हें ज्यूल वर्न्स के साथ साइंस फिक्शन के जन्मदाता को तौर पर अधिक जानती हो, लेकिन अपने जमाने में वह प्रगतिशील सामाजिक आलोचक के तौर पर मशहूर थे और उन्होंने कई विधाओं में लेखन किया...
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कर्ज में डूबा ग्रामीण भारत : 50 फीसदी से अधिक कृषि परिवारों पर कर्ज का भार
-डाउन टू अर्थ, राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के 77वें दौर के सर्वेक्षण में जारी रिपोर्ट में बताया गया है कि 2019 में 50 प्रतिशत से अधिक कृषि परिवार कर्ज में थे और प्रत्येक कृषि परिवार पर बकाया ऋण की औसत राशि 74,121 रुपये थी। 10 सितंबर को एनएसओ की ओर से जारी 'ग्रामीण भारत में परिवारों की स्थिति का आकलन और परिवारों की भूमि जोत, 2019' के निष्कर्ष में यह बात कही...
More »महामारी के दौरान शिक्षा का स्तर गिरा, गांवों में 37 फीसदी बच्चे पढ़ाई से दूर
-इनक्लूसिव मीडिया फॉर चेंज, महामारी के कारण स्कूल बंद होने से वंचित वर्गों से आने वाले स्कूली बच्चों के शिक्षा के अधिकार और सीखने के स्तर पर भारी असर पड़ा है. अगस्त 2021 (पहले दौर) के महीने में 15 राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों में किए गए 1,362 घरों के 1,362 स्कूली बच्चों (कक्षा 1-8 में नामांकित) को कवर करने वाला एक सर्वेक्षण, पिछले डेढ़ साल से स्कूलों के बंद रहने...
More »पुरुषों की तुलना में महिला नसबंदी प्रक्रिया ज्यादा जटिल लेकिन भारत में इसे ही प्राथमिकता दी जाती है
-द प्रिंट, छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में पिछले हफ्ते 101 महिलाओं की नसबंदी के मामला कुछ ऐसा है जो खुद इस पूरी प्रक्रिया की असली तस्वीर को सामने लाता है. महिला नसबंदी या ट्यूबेक्टॉमी परिवार नियोजन के उपलब्ध तरीकों में सबसे ज्यादा जटिल है. फिर भी भारत में कंडोम, इंट्रायूटराइन डिवाइस (आईयूडी), गर्भनिरोधक गोलियों और पुरुष नसबंदी की तुलना में परिवार नियोजन के इसी तरीके का सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है. राष्ट्रीय परिवार...
More »नवीनतम पीएलएफएस डेटा, विभिन्न प्रकार के श्रमिकों के बीच अल्प-रोजगार और स्वपोषित रोजगार में अवैतनिक सहायकों पर प्रकाश डालता है
आम तौर पर, अर्थशास्त्री एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में एक विशेष अवधि में बेरोजगारी और काम से संबंधित अनिश्चितता की सीमा का आकलन करने के लिए श्रमिक जनसंख्या अनुपात (डब्ल्यूपीआर), श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर) और बेरोजगारी दर (यूआर) जैसे संकेतकों का उल्लेख करते हैं. हालांकि, अन्य संकेतक भी हैं, जो रोजगार की स्थिति, आजीविका सुरक्षा और श्रमिकों की बदत्तर स्थिति को बेहतर तरीके से समझने में मदद कर सकते...
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