लोकसभा चुनाव में भारी बहुमत के साथ जीत हासिल कर नरेंद्र मोदी सरकार जब सत्ता में आई, तो लोगों को काफी उम्मीदें थीं। नरेंद्र मोदी ने लोगों से प्रभावी शासन का वायदा किया था, लेकिन सात महीने के शासन के बाद भी सरकार के कई मंत्रालयों की कार्यशैली में कोई बदलाव नहीं दिख रहा है। अगर सरकार के मिड ईयर इकोनोमिक एनलिसिस को देखें, तो पता चलता है कि कई...
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WPI@0.11%: थोक महंगाई में मामूली बढ़ोतरी, ब्याज दरों में कटौती की आस जगी
नई दिल्ली। कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट का रुख बने रहने से गत दिसंबर माह में भी थोक महंगाई दर शून्य के करीब बनी रही। हालांकि, नवंबर 2014 के मुकाबले थोक महंगाई दर मामूली रूप से बढ़कर दिसंबर में 0.11 फीसदी पर दर्ज की गई। खुदरा महंगाई दर भी दिसंबर माह में पांच फीसदी पर रही। ऐसे में महंगाई की चाल को देखते हुए ब्याज दरों में कटौती की...
More »बैंकों की दशा सुधारने की कवायद- धर्मेंन्द्रपाल सिंह
देश की अर्थव्यवस्था से आजकल अजीब इशारे मिले हैं। बीते अक्तूबर में औद्योगिक उत्पादन 4.2 फीसद गिरा। जुलाई से सितंबर की तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की दर 5.3 प्रतिशत दर्ज की गई। सरकार ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए पूरा जोर लगा रखा है, लेकिन देशी-विदेशी पूंजीपति नया निवेश करने से कतरा रहे हैं। कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि हमारा देश ‘बैलेंस शीट रिसेशन' के...
More »फिर स्वाइन फ्लू
जनसत्ता(संपादकीय)पिछले कुछ दिनों में दिल्ली में स्वाइन फ्लू से पांच लोगों की मौत हो चुकी है। समझा जा सकता है कि समय पर एहतियाती इंतजाम नहीं करने के क्या नतीजे हो सकते हैं। पिछले चार-पांच सालों में स्वाइन फ्लू एक गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है और इस बीमारी के उभरने के मौसम और बचाव के उपाय आदि को लेकर भी काफी हद तक तथ्य साफ हो चुके हैं।...
More »घर छोड़ने को मजबूर क्यों अन्नदाता? - देविंदर शर्मा
कृषि के संदर्भ में राष्ट्रीय नमूना सर्वे संगठन (एनएसएसओ) की हालिया रिपोर्ट साफ तौर पर बताती है कि कृषि न केवल संकट के दौर से गुजर रही है, बल्कि उसका तेजी से क्षरण भी हो रहा है। मैं चकित नहीं हूं। आखिरकार 1996 में ही विश्व बैंक ने भारतीय कृषि के पतन की दिशा बता दी थी। तब विश्व बैंक ने अनुमान लगाया था कि अगले बीस वर्षों में भारत...
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