गरीबी के बारे में योजना आयोग के नवीनतम आकलन पर बड़ी चीख-पुकार मची। यह हाय-तौबा जितनी तेज थी, समझ और विवेक उसी अनुपात में कम। सबसे निंदनीय थे वे राजनेता, जिन्होंने आम आदमी को चोट पहुंचाने वाली बातें कहीं। जरूरी यह है कि हम ये समझने का प्रयास करें कि सुरेश तेंदुलकर की गरीबी रेखा वास्तव में क्या बताती है? सुरेश तेंदुलकर देश के बेहतरीन अर्थशास्त्रियों में से एक थे। उन्हीं...
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कभी स्वर्ग, आज वीरान!- हरिवंश
वेतन लाखों में हो गये. लेकिन वेतन बढ़ने से वास्तविक उत्पादन या आय पर क्या असर हुआ, इसे जांचने का कोई विश्वसनीय मेकेनिज्म नहीं है. अमेरिका के डेट्रायट शहर में यही हुआ. पेंशन का बोझ बढ़ता गया. रिटायर लोगों की पेंशन, नये नियुक्त लोगों की तनख्वाह से कई गुना अधिक. ऊपर से शहर की सरकार ने बाहर से कर्ज लेना जारी रखा. कर्ज अगर भोग-विलास के लिए लिया जाये, तो दुर्दशा...
More »मुक्त बाजार का दुश्चक्र- सुनील
जनसत्ता 27 अगस्त, 2013 : रुपया लुढ़कता जा रहा है। इसे रोकने की भारत सरकार और रिजर्व बैंक की सारी कोशिशें नाकाम होती जा रही हैं। चारों तरफ घबराहट फैल रही है। इसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ रहा है। पेट्रोल सहित तमाम आयातित वस्तुएं महंगी होने से महंगाई का एक नया सिलसिला शुरू हो रहा है। एक तरह से हम महंगाई का आयात कर रहे हैं। इतना ही नहीं, विदेशी...
More »पत्रकारिता का लाइसेंस क्यों?- उर्मिलेश
जनसत्ता 22 अगस्त, 2013 : भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष जस्टिस मार्कंडेय काटजू काफी दिनों से पत्रकारिता की तुलना वकालत और डॉक्टरी आदि जैसे पेशों से करते आ रहे हैं।उनका तर्क है कि अन्य सभी पेशों के लिए कुछ न कुछ योग्यता तय है। पर पत्रकार कोई भी बन जाता है! पांच-छह महीने पहले उनके इस आशय के बयानों पर काफी विवाद हुआ तो विस्तृत रिपोर्ट और सुझाव देने के लिए उन्होंने...
More »लखनऊ में पैदा हुए रोजगार के सबसे ज्यादा अवसर:एसोचैम
लखनऊ : चालू वित्त वर्ष 2013-14 की पहली तिमाही में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ समेत चुनिंदा प्रमुख शहरों में रोजगार के अवसरों में 39 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गयी है. उद्योग मंडल ‘एसोचैम’ के ताजा अध्ययन में यह दावा किया गया है. एसोचैम के रिसर्च ब्यूरो द्वारा किये गये अध्ययन में लखनऊ, आगरा, इलाहाबाद, अलीगढ़, कानपुर और मेरठ नगरों को शामिल किया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक चालू वित्त वर्ष...
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