पिछले हफ्ते दो रिपोर्टें प्रकाशित हुई हैं, जिनमें कई वर्षों के बाद भारत के गरीबों, महिलाओं और बच्चों की स्थिति के बारे में कुछ ऐसे आंकड़े छपे, जिनसे कुछ आशा पैदा हुई। वर्षों से भारतीय बच्चों के बारे में यही सच्चाई बार-बार सामने आती थी, कि उनमें से तकरीबन आधे कुपोषण के शिकार हैं। यूनिसेफ और महिला व बाल कल्याण मंत्रालय द्वारा किए गए एक हालिया सर्वेक्षण के अनुसार, 2005-07 में...
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बड़े सवालों से मुंह छुपाता वाम- उर्मिलेश
चुनावी विफलताओं से उपजी हताशा और अपनी निष्क्रियता के चलते काफी लंबे समय से देश के पारंपरिक वामपंथी दल राष्ट्रीय-चर्चा से लगभग बाहर हैं. इधर, अचानक मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी में महासचिव प्रकाश करात और पोलित ब्यूरो के सदस्य सीताराम येचुरी के पक्ष-विपक्ष की दलबंदी के चलते वाम-राजनीति की एक खास बहस सामने आयी है. यह प्रमुखत: गंठबंधन की राजनीति को लेकर है. लेकिन इस बहस में वे सवाल कहीं नहीं...
More »असभ्य समाज का चिह्न है मृत्युदंड- आकार पटेल
आजकल दो अपराधियों की नियति चर्चा में है. एक हैं गुजरात की पूर्व मंत्री मायाबेन कोडनानी, जिन्हें 2002 में राज्य में हुए नरसंहारों में से एक में अपराधी मानते हुए 28 वर्ष की कैद की सजा दी गयी है. उन्हें खराब स्वास्थ्य के आधार पर फिलहाल जमानत मिली हुई है. इस महीने गुजरात सरकार ने कहा है कि वह कोडनानी का पक्ष लेगी और उन्हें जेल भेजने पर आमादा विशेष...
More »पुलिस सुधार का नजरिया -विकास नारायण राय
हर वर्ष पुलिस स्मृति दिवस (इक्कीस अक्तूबर) पर विभिन्न पुलिसबलों के सैकड़ों शहीद याद किए जाते हैं। एक ओर कर्तव्य-वेदी पर प्राणों की आहुति की वार्षिक रस्म-अदायगी देश की तमाम पुलिस यूनिटों में हो रही होती है और दूसरी ओर पुलिस की छवि को लेकर भारतीय समाज में मिश्रित कुंठाएं भी ज्यों की त्यों बनी रहती हैं। पुलिस की पेशेवर क्षमता को लेकर जन-मानस में धारणा रही है, बेशक अतिरेकी,...
More »गांधी, गांव और इश्तहार- चंदन श्रीवास्तव
बड़ा फर्क है गांधी और आंबेडकर की सोच में बसे गांव के बीच. गांधी के गांव में हिंसा है ही नहीं. गांधी की कल्पना में बसते गांव में भूमिहीन और भूस्वामी बिना झगड़े के रहते हैं. गांधी से किसी ने पूछा- बताइए, गांव के भूमिहीन और भूस्वामियों के बीच कैसे बराबरी स्थापित होगी? उनका जवाब था- भूस्वामी स्वयं ही अपनी भूमि पर दावा छोड़ भूमिहीनों की मदद के लिए आगे...
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