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गोदान : किसान की शोकगाथा--- . गोपाल प्रधान

  ‘गोदान’ के प्रकाशन के 75 साल पूरे हो गए हैं लेकिन भारत का देहाती जीवन आज भी लगभग उन्हीं समस्याओं और चुनौतियों से घिरा दिखता है जिनका वर्णन मुंशी प्रेमचंद के इस कालजयी उपन्यास में हुआ है. गोपाल प्रधान का आलेख    सन 1935 में लिखे होने के बावजूद प्रेमचंद के उपन्यास 'गोदान' को पढ़ते हुए आज भी लगता है जैसे इसी समय के ग्रामीण जीवन की कथा सुन रहे हों....

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राशन पर सरकारी डाका -- प्रशांत कुमार दुबे

सरकार अब राशन में खाद्यान्न की जगह नकद भुगतान करने जा रही है. इसका पायलट फेज दिल्ली की दो बस्तियों में प्रारंभ भी कर दिया गया है. सरकार के इस कदम के बाद यह कहना गलत नहीं होगा कि सरकार अपनी संवैधानिक प्रतिबद्धता को भी समाप्त करने की कोशिश कर रही है. हालांकि सार्वजनिक वितरण प्रणाली को कमजोर करने की साजिश तो वर्ष 1991 के बाद से ही शुरु हो...

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काश! इन किसानों के लिए भी होते कोई प्रेमचंद

हाड़-तोड़ मेहनत कर उपजाई गई फसल को औने-पौने दाम पर बेचने के लिए मजबूर -क्रय केंद्र के इंतजार में पथरा गई आंखें, विशेष परिस्थिति में दे दिया बिचौलिए को अजय रत्‍‌न, मुजफ्फरपुर : बोचहां प्रखंड के सनाठी गांव निवासी केदार सहनी व बिंदेश्वर राय को क्या मालूम था कि उन्हें अपनी सोने सी फसल बिचौलिए के हाथ औने-पौने दाम पर बेच देनी होगी। केदार को पत्‍‌नी की अचानक मौत व बिंदेश्वर को माता...

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विकास रोक देगा यह कालाधन-- अरुण कुमार

आज भारत में लगभग सभी आर्थिक गतिविधियों में अवैध तरीके अपनाये जाते हैं. यह स्थायी और संस्थागत रूप ले चुका है. वर्तमान दशक को घोटालों का दशक कहा जा सकता है. जिन लोगों पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं, उन्होंने बेशर्मी से मामले को अंतिम समय तक दबाने की कोशिश की. चाहे मामला 2 जी स्पेक्ट्रम आवंटन का हो या फ़िर कॉमनवेल्थ घोटाले का. यही वजह है कि सत्ताधारी पार्टियां...

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आम बजट 2011-12: खास-खास बातें

नई दिल्ली। देश की अर्थव्यवस्था के वैश्विक आर्थिक संकट से पूर्व की स्थिति में पहुंचने का जिक्र करते हुए केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने सोमवार को लोकसभा में वित्त वर्ष 2011-12 के लिए आम बजट पेश करते हुए भाषण की शुरुआत की। अपने शुरुआती भाषण में मुखर्जी ने कहा, 'हम उच्च विकास और चुनौतियों से भरपूर एक महत्वपूर्ण वर्ष के अंत में है। वर्ष 2010-11 में विकास दर अच्छी रही। अर्थव्यवस्था...

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