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किसान-आत्महत्याओं में कमी लेकिन खेतिहर मजदूरों की आत्महत्याओं में बढ़ती के रुझान

एक साल के दरम्यान खेती-किसानी के काम में लगे लोगों की आत्महत्या घटनाओं में 9.8 फीसद की कमी आई है- क्या इस तथ्य को खेती-किसानी की हालत में सुधार का संकेत मानें ? यह तथ्य केंद्रीय कृषि मंत्रालय के राज्यमंत्री पुरुषोत्तम रौतेला के एक जवाब के जरिए सामने आया है. बजट-सत्र के दौरान राज्यमंत्री ने 20 मार्च को एक प्रश्न(संख्या-4111) के जवाब में संसद में बताया कि साल 2015 में खेती-किसानी से जुड़े 12602 लोगों...

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चंपारण से निकला रास्ता- राजू पांडेय

चंपारण सत्याग्रह नील की खेती करने वाले किसानों के अधिकारों के लिए संगठित संघर्ष के रूप में विख्यात है। इसके एक सदी बाद भी देश का किसान बदहाल है। 2010-11 के आंकड़ों के अनुसार, देश के 67.04 प्रतिशत किसान परिवार सीमांत हैं जबकि 17.93 प्रतिशत कृषक परिवार लघु की श्रेणी में आते हैं। सरकार ने संसद को राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण द्वारा जुलाई 2012 से जून 2013 के संदर्भ में संकलित...

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गैर आदिवासियों को जमीन न बेच पाने के कानून से परेशान हो रहे आदिवासी

रायपुर। आदिवासियों के हितों की रक्षा के लिए बने कानून अब उनके लिए परेशानी का सबब बन रहे हैं। 1959 में भू-राजस्व संहिता लागू हुई तो प्रावधान किए गए कि आदिवासी की जमीन कोई गैर आदिवासी नहीं ले सकता। यह भी कानून बनाया गया कि अगर किसी आदिवासी के पास पांच एकड़ से कम भूमि है तो वह आदिवासी को भी अपनी भूमि बिना कलेक्टर की अनुमति के नहीं बेच सकता। अब...

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जन-आंदोलनों का विचार-- अनुज लुगुन

साल 1930 में मार्च महीने की 12 तारीख थी. जैसे हर रोज सूरज निकलता है, वैसे ही उस दिन भी सूरज निकलनेवाला था, फिर भी उन लोगों को सूरज के उगने की प्रतीक्षा थी. यद्यपि उन्हें मालूम था कि वे सरकार के विरुद्ध कदम उठा रहे हैं और उसका परिणाम यातनामयी होगा, लेकिन सबने प्रण कर लिया था कि यदि कदम नहीं बढ़े, यदि आवाज नहीं उठी, तो उनके जीवन...

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महाराष्ट्रः किसानों ने जीती जंग, मुंबई ने जीता दिल

ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। नासिक से 180 किलोमीटर का पैदल मार्च करते मुंबई पहुंचे करीब 50,000 किसानों का आंदोलन सोमवार को सरकार से वार्ता के बाद समाप्त हो गया। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस द्वारा बनाई गई छह सदस्यीय समिति के साथ माकपा के किसान संगठन ऑल इंडिया किसान संघ (एआईकेएस) के प्रतिनिधियों की बातचीत हुई। इसमें किसानों की ज्यादातर मांगें न सिर्फ मान ली गईं, बल्कि उन्हें मानने का लिखित आश्वासन भी...

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