अगर किसी कृषि प्रधान देश में कृषि और किसान ही संकट में आ जायें तो देश की दशा-दिशा का अंदाजा लगा पाना मुश्किल नहीं होना चाहिए। भारत एक कृषि प्रधान देश है, यह बात दशकों से पाठ्य पुस्तकों में पढ़ायी जाती रही है, क्योंकि लगभग 80 प्रतिशत तक आबादी जीवनयापन के लिए कृषि और उससे जुड़े काम-धंधों पर निर्भर रही है। इसलिए ग्रामीण भारत को ही असली भारत भी कहा...
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बोलने की आजादी बनाम बड़बोलापन-- रमेश दवे
लोकतंत्र सभ्यता, शील और मर्यादा के उत्कर्ष की सत्ता-प्रणाली है। पर कुछ वर्षों में लोकतंत्र के शील का आसन भाषण की अराजकता से गंदा किया गया है। यह सच है कि भारत के सर्वश्रेष्ठ और विश्व के सबसे बड़े संविधान ने अनेक दायित्व, मर्यादाएं, सीमाएं और अभिव्यक्ति की आजादी का नागरिक और नैतिक अधिकार भी दिया है, लेकिन बोलना अगर बड़बोलापन बन जाए, अभिव्यक्ति अगर विकृति बन जाए और संविधान...
More »सुप्रीम कोर्ट में अभूतपूर्व हलचल-- आशुतोष चतुर्वेदी
किसी भी लोकतांत्रिक देश में जब भी कोई संकट की घड़ी आती है, तो उस दौरान उसके प्रशासनिक प्रतिष्ठानों की एक तरह से परीक्षा होती है. लोकतंत्र का भविष्य इससे तय होता है कि ये प्रतिष्ठान कितने गंभीर झटकों को आत्मसात कर सकते हैं. इसमें सबसे महत्वपूर्ण हैं अदालतें और उसमें भी सर्वोपरि है सुप्रीम कोर्ट. समय-समय पर अन्य सत्ता प्रतिष्ठानों पर भले ही सवाल उठते रहे हों, लेकिन न्यायपालिका...
More »महाराष्ट्र के संदेश को सुनिए-- शशि शेखर
पिछले दिनों आधे से अधिक महाराष्ट्र को जातीय हिंसा की आग ने जिस तेजी से अपनी चपेट में लिया, उससे आशंकित और आतंकित होना लाजिमी है। इस दौरान उन्माद में अंधे हो रहे लोगों ने पाठशाला से घर लौट रहे मासूमों की बसों तक पर पथराव किया। भय से कंपाते बच्चों को अपने सहपाठियों के यहां शरण लेनी पड़ी। उधर, उनके मां-बाप मुंबई महानगर के मुख्तलिफ हिस्सों में बेबसी जीने...
More »बेसहारा बच्चों की फिक्र किसे है--- विशेष गुप्ता
आज किशोर न्याय अधिनियम के अंतर्गत सारी की सारी कवायद कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चों की उम्र को लेकर हो रही है यानी किस उम्र तक किशोर न्याय अधिनियम लागू करना उचित होगा और किस उम्र के बाद दंड प्रक्रिया संहिता लागू होनी चाहिए। इसी सिलसिले में कुछ चर्चा अपराध की प्रकृति को लेकर भी होती रही है। पर अनाथ, बेसहारा व नशे की गिरफ्त में आने वाले बच्चों...
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