देशभर में आए दिन सामने आने वाले विवादों-मुद्दों में कम ही ऐसा होता है, जिस पर सभी एकमत हों! अपवाद का ऐसा ही एक आधार है-निजी स्कूलों की बेलगाम फीस। सभी एकमत हैं कि फीस बहुत ज्यादा है और इस पर नियंत्रण होना ही चाहिए। निजी स्कूलों की स्थिति समझने के लिए सबसे पहले कुछ संदर्भ। वर्ष 2010-11 से 2015-16 के बीच 20 राज्यों के सरकारी स्कूलों में 1 करोड़...
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क्यों बंद हो रहे सरकारी स्कूल--- कौशलेन्द्र प्रपन्न
एक सरकारी स्कूल का बंद होना क्या मायने रखता है इसका अनुमान शायद हम आज न लगा सकें। संभव है इसका खमियाजा समाज को दस-बीस बरस बाद भुगतना पड़े। एक ओर विकास के डंके बज रहे हैं वहीं दूसरी ओर आम बच्चों से उनकी बुनियादी शिक्षा की उम्मीद यानी सरकारी स्कूल तक छीने जा रहे हैं। हमने 2000 में सहस्राब्दी विकास लक्ष्य तय किया था। उसमें 2010 तक सभी बच्चों...
More »सूने होते गांव-- चंदन चौधरी
एक जमाना था जब कहा जाता था ‘उत्तम खेती, मध्यम बान, अधम चाकरी भीख निदान।' इस कहावत के अर्थ से मेरा गांव भी अछूता नहीं था। जम कर खेती की जाती थी और तब महात्मा गांधी के सपनों के सुराज का प्रभाव यहां दिखता था। यों मेरा गांव बहुत छोटा है, लेकिन अंदर से इतना बड़ा कि यहां सभी लोग आपस में वर्षों से मिलजुल कर और सौहार्द से रहते...
More »50,000 मदरसा टीचरों पर सरकार की बेरुखी! दो साल से नहीं दिया पैसा
केंद्रीय योजना के तहत पंजीकृत मदरसों में नियुक्त 50,000 शिक्षकों को वेतन नहीं मिल रहा है। इसके कारण कई शिक्षकों को नौकरी छोड़नी पड़ रही है। नरेंद्र मोदी की सरकार पिछले दो वर्षों से इसके लिए आवंटित फंड जारी नहीं कर रही है। इससे देश के 16 राज्यों के मदरसा प्रभावित हुए हैं। इनमें उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और झारखंड जैसे भाजपा शासित राज्य भी शामिल हैं। इन राज्यों...
More »पढ़ाई का परिदृश्य-- कालू राम शर्मा
हम आज भी मैकाले को खलनायक के रूप में याद करते नहीं थकते हैं। अंगेजों के राज में एक खास प्रकार की शिक्षा-व्यवस्था रची गई थी, जो तब अंग्रेजी राज की जरूरतों के मुताबिक थी। आजादी पाने के पहले ही गांधीजी उस शिक्षा-व्यवस्था से न केवल व्यथित थे, बल्कि उनमें एक आक्रोश था और इसका उन्होेंने हल भी खोजा कि शिक्षा ऐसी हो जो देश की सामाजिक स्थिति और यहां...
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