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कैसे थमेगी स्त्रीविरोधी हिंसा- विकास नारायण राय

जनसत्ता 2 सितंबर, 2013 : लैंगिक असमानता के जंगल में भेड़ियों का यौनिक हिंसा का खेल थमना नहीं जानता। तो भी एक अभिभावक की हैसियत से कोई नहीं चाहेगा कि उसकी बेटी का ऐसे दरिंदों से वास्ता पड़े। स्त्री के विरुद्ध होने वाली घृणित यौनिक हिंसा की ये पराकाष्ठाएं किसी भी अभिभावक को वितृष्णा और असहायता से भर देंगी। मगर आसाराम पर लगे आरोप या मुंबई में फोटो-पत्रकार के साथ...

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बंसल की कथनी, सीबीआई की करनी- बृजेश सिंह और राहुल कोटियाल

रेलवे रिश्वत कांड में सीबीआई ने फिर से वही किया जिसके लिए वह हमेशा से मशहूर रही है. बृजेश सिंह और राहुल कोटियाल की पड़ताल. बात है चार मई 2013 की. मीडिया में खबर आई कि सीबीआई ने कुछ लोगों को रेलवे बोर्ड के सदस्य के पद पर नियुक्ति के लिए रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया है. इनमें तब के रेलमंत्री पवन बंसल का भांजा विजय सिंघला भी शामिल था. चारों...

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तर्कशीलता की मशाल- सुभाष गताडे का आलेख

जनसत्ता 28 अगस्त, 2013 : गए साल मार्च की बात है, जब मुंबई के एक उपनगर के गिरजाघर में सलीब पर टंगी ईसा मसीह की प्रतिमा के पैर से टपक रहे जल ने तहलका मचा दिया था। हजारों की तादाद में वहां भीड़ जुटने लगी और ईसा मसीह के ‘टपकते आंसुओं’ से भावविह्वल होती नजर आई। मेले जैसा दृश्य बन गया। टीवी वालों ने इस ‘चमत्कार’ का सजीव प्रसारण शुरू...

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यह गरीबी खत्म करने की रेखा नहीं- मिहिर शाह(योजना आयोग के सदस्य)

 गरीबी के बारे में योजना आयोग के नवीनतम आकलन पर बड़ी चीख-पुकार मची। यह हाय-तौबा जितनी तेज थी, समझ और विवेक उसी अनुपात में कम। सबसे निंदनीय थे वे राजनेता, जिन्होंने आम आदमी को चोट पहुंचाने वाली बातें कहीं। जरूरी यह है कि हम ये समझने का प्रयास करें कि सुरेश तेंदुलकर की गरीबी रेखा वास्तव में क्या बताती है? सुरेश तेंदुलकर देश के बेहतरीन अर्थशास्त्रियों में से एक थे। उन्हीं...

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खाद्य या यूपीए-सुरक्षा बिल!- प्रमोद जोशी

जिस विधेयक को लेकर राजनीति में ज्वालामुखी फूट रहे थे, वह खुशबू के झोंके सा निकल गया. पक्षियों-विपक्षियों में उसे गले लगाने की ऐसी होड़ लगी, जैसे अपना बच्चा हो. आलोचना भी की तो जुबान दबा कर. यों भी उसे पास होना था, पर जिस अंदाज में हुआ उससे कांग्रेस का दिल खुश हुआ होगा. जब संसद के मॉनसून सत्र के पहले सरकार अध्यादेश लायी तो वृंदा करात ने कहा था,...

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