नरेंद्र मोदी सरकार ने सवर्ण गरीबों को आर्थिक मापदंड पर आधारित आरक्षण देने का निर्णय किया है. इस मापदंड के अनुसार आठ लाख रुपये प्रति वर्ष, अर्थात 66,600 रुपये प्रतिमाह से कम आय पाने वाले लोग अब आर्थिक मापदंड से पिछड़े माने जाएंगे. इसका सीधा मतलब यह है कि मोदी सरकार ने वास्तविक दृष्टि से गरीब सवर्णों को आरक्षण दिया ही नहीं है, बल्कि चुनाव जीतने के लिए उनकी आंखों में...
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आर्थिक संतुलन लेकिन नजर वोट पर-- कन्हैया सिंह
अर्थशास्त्र की भाषा में हम जिसे चुनावी बजट कहते हैं, वैसा यह बजट नहीं है। चुनावी बजट हम उसे कहते हैं, जिसमें सरकार तरह-तरह के मतदाताओं को तोहफे बांटते समय वित्तीय घाटे का ख्याल नहीं रखती। लेकिन इस बजट की खास बात यह है कि इसमें वित्तीय घाटे का पूरा ख्याल रखा गया और उसे एक सीमा से अधिक नहीं बढ़ने दिया गया है। अभी तक यह 3.3 फीसदी था,...
More »बजट में हो ‘भारत’ पर नजर- निशिकांत दुबे
वर्ष 2019-20 का केंद्रीय बजट एक ऐसे वक्त में पेश होने जा रहा है, जब पूरा विश्व जटिल आर्थिक परिस्थितियों का शिकार है. विश्व की बड़ी औद्योगिक अर्थव्यवस्थाओं में अपस्फीति (डीफ्लेशन) की प्रवृत्ति एक ऐसा जोखिम बनकर उभरी है, जिसके प्रभाव से आगामी कई वर्षों के लिए वैश्विक विकास के अवरुद्ध हो जाने का खतरा मंडरा रहा है. वैसे, यह एक दूसरी बात है कि कच्चे तेल तथा अधिकांश जिंसों...
More »क्यों नहीं सीख पाते हैं बच्चे-- दिलीप रांजेकर
काफी समय पहले अमेरिका में एक प्रमुख स्कूल द्वारा आयोजित ‘एजुकेशन थिंकटैंक कांफ्रेन्स' में हिस्सा लेने के दौरान मुझे यह समझ आया था कि फिनलैंड और स्वीडन जैसे कुछ देशों को छोड़ दें, तो आम तौर पर पूरी दुनिया स्कूली शिक्षा में गुणवत्ता के मुद्दे से जूझ रही है। कांफ्रेन्स में 70 देशों के प्रतिनिधि मौजूद थे और उनमें से अधिकांश अपने देश में शिक्षा की खराब गुणवत्ता का रोना...
More »पर्यावरण की चिंता जरूरी-- जगदीश रत्तनानी
विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) लगभग आधी सदी पुरानी संस्था है. यह खुद को सार्वजनिक-निजी सहयोग करनेवाले अंतरराष्ट्रीय संगठन के रूप में पेश करती है और वैश्विक आर्थिकी सुधारने के लिए प्रतिबद्ध है. अपने सफर की शुरुआत में इस मंच ने विश्व की एक हजार प्रमुख कंपनियों के लिए सदस्यता की एक व्यवस्था बनायी थी. स्वाभाविक है कि इसने अपने सालों के सफर में भविष्य पर विचार करने के लिए महंगी...
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