जलवायु परिवर्तन, भूख, कुपोषण, बढ़ती गरीबी, घटते संसाधन, ये सभी ऐसी समस्याएं हैं जिनसे आज सारी दुनिया जूझ रही है। अरबों रुपए इन समस्याओं के हल के लिए अंतराष्ट्रीय सम्मेलनों पर खर्च किए जा चुके हैं। आगे भी किए जाएंगे। पर हल तब भी शायद ही निकले। तो क्या किया जाए? गांधी-विचारों में रची-बसी, स्वाश्रयी महिला सेवा संघ (सेवा), अमदाबाद की संस्थापक और गुजरात विद्यापीठ की चांसलर इला भट्ट के...
More »SEARCH RESULT
संकट में वन्य जीव-- रीता सिंह
वर्ल्ड वाइल्ड फंड एवं लंदन की जूओलॉजिकल सोसायटी की हालिया रिपोर्ट चिंतित करने वाली है कि 2020 तक धरती से दो तिहाई वन्य जीव खत्म हो जाएंगे। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर में हो रही जंगलों की अंधाधुंध कटाई, बढ़ते प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के कारण पिछले चार दशकों में वन्य जीवों की संख्या में भारी कमी आई है। रिपोर्ट के मुताबिक 1970 से 2012 तक...
More »मौन जुलूसों के नीचे धधकती आग-- प्रमोद मीणा
किसी के कंधे पर बंदूक रख कर निशाना लगाना क्या होता है, इसकी जीवंत बानगी मराठा आंदोलन है। लाखों की संख्या में मराठा महाराष्ट्र की सड़कों पर मौन जलूस निकाल रहे हैं। इसका तात्कालिक कारण बताया जा रहा है अहमदनगर जिले में एक चौदह वर्षीय मराठा लड़की का बलात्कार और हत्या। इस मामले में अभी तक पकड़े गए तीनों आरोपी दलित हैं। कू्ररता की शिकार इस बालिका को न्याय दिलाने...
More »घोर किसान विरोधी है मोदी सरकार: योगेंद्र यादव
आम आदमी पार्टी के पूर्व नेता एवं ‘स्वराज इंडिया' के अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने मोदी सरकार पर जमकर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार किसान हितैषी नहीं हैं। लाइव इंडिया डिजिटल से योगेंद्र यादव ने कई अहम विषयों पर की खास बातचीत। सवाल: स्वराज इंडिया नाम से आपने एक राजनीतिक पार्टी बनाया है। ऐसी खबरें आ रही हैं कि आपकी पार्टी अगले साल पंजाब में विधानसभा चुनाव और नई दिल्ली...
More »1000 करोड़ की फसल बर्बादी से धीमी होगी विकास की चाल-- प्रकाशकांत
पूरे देश की ही तरह मध्य प्रदेश के अर्थतंत्र की रीढ़ भी खेती है। इसी खेती ने 2008 की विश्व मंदी में भी देश की अर्थव्यवस्था को डूबने से बचाया था। हालांकि, यही खेती खुद भी कभी सूखे तो कभी अतिवृष्टि की शिकार होती रही है। नईम की इन पंक्तियों की तर्ज पर कि 'सूखे का हुआ कभी/कभी हुआ बाढ़ का/पहला दिन मेरे आषाढ़ का"। इस बार आषाढ़ तो नहीं मगर...
More »