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नौकरियां कहां हैं?-- संदीप मानुधने

एक सौ तीस करोड़ से अधिक की जनसंख्या के हमारे देश में हमें लगातार बताया गया है कि अधिकांश आबादी युवा है और यही हमारी सबसे बड़ी ताकत है. यह तर्क मैंने 1997 के बाद से लगभग हर राजनेता को इस्तेमाल करते देखा. तब उम्मीदें आसमान तो छू रही थीं, क्योंकि वैश्वीकरण के चलते हर तरह की तरक्की का वादा हमसे हुआ था, (और कुछ हद तक वैसा हुआ भी)....

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बजट में हुई अनदेखी का अर्थ-- डा. भरत झुनझुनवाला

वित्त मंत्री ने बजट में सरकार के पूंजी खर्चों को बढ़ाने की बात कही है. ग्रामीण सड़क एवं विद्युतीकरण जैसी महत्वपूर्ण योजनाओं में निवेश बढ़ाया गया है. यह कदम सही दिशा में है. इस दिशा में पहली चुनौती कार्यान्वयन की है. एनडीए सरकार के अब तक के प्रथम तीन वर्षों में सरकार के पूंजी खर्चों में गिरावट आयी है. यह क्षम्य है, चूंकि बीत वर्षों में सरकार पर सातवें वेतन आयोग...

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विकास को बरकरार रखनेवाला बजट-- आलोक पुराणिक

आम बजट को 'कामचलाऊ', 'लोकलुभावन' और 'ऐतिहासिक' जैसी संज्ञाएं दी जा रही हैं. लेकिन, इसे न तो पूरी तरह से लोगों के अलग-अलग तबकों को तुष्ट करने के इरादे से लाया गया है, और न ही इसमें आर्थिक सुधारों को गति देने की कोई ठोस पहल की गयी है. सरकार ने गांव और गरीब पर फोकस तो किया है, पर और बेहतर की गुंजाइश बनी हुई है. बजट के विभिन्न...

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इंफ्रा-मुखी लुभावना बजट-- प्रमोद जोशी

भारत का बजट लोक-लुभावन राजनीति, राजकोषीय अनुशासन और अर्थशास्त्रीय नियमों की रोचक चटनी होता है. इसकी बारीकियां केवल वित्त मंत्री का भाषण सुननेभर से समझ में नहीं आतीं. अलबत्ता पहली नजर में सार्वजनिक प्रतिक्रिया समझ में आ जाती है. इस लिहाज से इस बार का बजट काफी बड़े वर्ग को खुश करेगा. इसमें सामाजिक क्षेत्र का ख्याल है, ग्रामीण क्षेत्र की फिक्र है, साथ ही छोटे करदाता की परेशानियों को...

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बजट 2016-17, उम्मीदें और संभावनाएं : सरकार को पॉपुलिस्ट होने से बचना होगा

नोटबंदी के बाद क्रय-विक्रय की गति मंद पड़ने से बाजार और अंतत: अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ा है. ऐसे में केंद्रीय बजट का जोर अर्थव्यवस्था को गति देने पर भी होगा, ऐसी संभावना है. इसके अलावा निजी पूंजी निवेश के लिए नये सेक्टरों पर फोकस भी करना होगा, ताकि रोजगार का सृजन हो सके. आज पढ़िए तीसरी किस्त. जिस तरह से बीते कुछ वर्षों में नौकरियों में कमी देखी...

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