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कोसी का कहर

कोसी का कहर अगस्त 2008 में बिहार के एक बड़े इलाके पर टूट पड़ा। कोसी को कभी बिहार का शोक कहा जाता था। जब यह नदी पूर्णिया जिले में बहती थी तब एक कहावत बड़ी चर्चित थी कि ‘जहर खाओ, न माहुर खाओ, मरना है तो पूर्णिया जाओ।’ इस नदी का यह स्वभाव था कि वह अपना रास्ता बदलती रहती थी। यह कब अपना रुख बदल लेगी, इसका अंदाजा लगाना...

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कुपोषण-मछरी जल बीच मरत पियासी

कुपोषण के बारे में अक्सर मान लिया जाता है कि यह तो गरीब राज्यों का लक्षण है और अपेक्षाकृत समृद्ध राज्य कुपोषण को मिटाने की राह पर हैं। लेकिन सच्चाई इसके उलट है। कुपोषण की शिकार महिलाओं और औसत से कम वजन के बच्चों की एक बड़ी तादाद धनी माने जाने वाले राज्यों में मौजूद है और ध्यान रहे कि इन दोनों को मानव-विकास के निर्देशांक में बड़ा महत्वपूर्ण माना जाता...

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वाई एस आर- एक नाम गरीबों के दर्दमंद का

  कोई कहता था वाई एस राजशेखर रेड्डी तो कोई सिर्फ वाई एस आर । मेडिकल की पढ़ाई फिर प्रैक्टिस और उसके बाद राजनीति में उतरे आंध्रप्रदेस के मु्ख्यमंत्री राजशेखर रेड्डी का आकस्मिक और दुखद निधन अधिकारों के दायरे को बढ़ाकर भारत का विकास करने वाली सोच पर एक आघात की तरह है। राजशेखर रेड्डी ने नरेगा और वृद्धावस्था पेंशन जैसे सैकड़ों ग्रामीण विकास योजनाओं को लागू करने में अग्रणी भूमिका...

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भूख का बढ़ता भूगोल

भारत में जब से आर्थिक उदारीकरण आया है, एक अद्भुत विरोधाभास उदारवादियों में देखने को मिला है। जहां भारत में कई जगह अभ्युदय हो रहा है। वहीं हालात 20 साल से ज्यादा खराब होते गए हैं। खासकर लोगों की खुराक कम हुई है। सिर्फ जिंदा रहने के लिए लोग इस देश में भोजन ग्रहण कर रहे हैं और इसका मूल कारण जनसंख्या का बढ़ना नहीं है, जैसा कि अनुमान लगाया...

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एक साल में चावल 13% और गेहूं 4% महंगा

नई दिल्ली : पिछले एक साल के दौरान कमोडिटीज की कीमतों में जिस तरह बढ़ोतरी दर्ज की गई है उससे आने वाले वक्त में गरीबों के लिए जरूरी वस्तुओं को मुहैया कराने के लिए सरकार को इन वस्तुओं का वितरण तंत्र बेहतर बनाने की जरूरत होगी। एसोचैम ईको पल्स स्टडी में कहा गया है कि मांग और आपूर्ति में मौजूद अंतर की वजह से पिछले साल अगस्त से इस साल...

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